Monday, 6 June 2011

महाढपोरी शंख हैं मन्त्री

क्रान्ति-भूमि के ऊपर दद्दा, काला कौआ बैठा है |
डायलिमा में पड़ा नागरिक, दिल में हौआ बैठा है ||
इ हौआ का  दूर  भगावेक, तम्बू - टंटा  तान लो |
सरकार वार तो करिते रहिहै, मरने की अब ठान लो ||  

दो टूक फैसला करने का अब मौसम आया है भाई |
जो डरा समझ लो मरा, ऐ दद्दा,  चच्चा  बहना  माई ||
साथी  हाथ  बढ़ाना  इसके  पीछे  बड़ा  बवाल  है |
भ्रष्टाचारी ताल ठोंकता , "सोनी-मोहनी"  जाल है ||

चोरन की चण्डाल चौकड़ी चम-चम चांदी काटते |
अपने अंधे  भक्तों  को  भर - पेट  रेवड़ी  बांटते ||
अर्ध - अधूरे  नंगे  लूले  सारे  ढोलम - पोल  हैं |
महानपुन्सक, महानिकम्मा हल्ला करते ढोलहैं ||

एक माँग पर बोले दो लो, मांगो दो तो चार है |
महाढपोरी शंख हैं मन्त्री ,  दो-धारी तलवार है ||
सांपनाथ औ नागनाथ के काटे का बस एक उपाय 
गुनी बुलाना, धुनी रमाना झाड़ू से ही झाड़ा जाय ||



No comments:

Post a Comment