क्रान्ति-भूमि के ऊपर दद्दा, काला कौआ बैठा है |
डायलिमा में पड़ा नागरिक, दिल में हौआ बैठा है ||
इ हौआ का दूर भगावेक, तम्बू - टंटा तान लो |सरकार वार तो करिते रहिहै, मरने की अब ठान लो ||
दो टूक फैसला करने का अब मौसम आया है भाई |
जो डरा समझ लो मरा, ऐ दद्दा, चच्चा बहना माई ||
साथी हाथ बढ़ाना इसके पीछे बड़ा बवाल है |
भ्रष्टाचारी ताल ठोंकता , "सोनी-मोहनी" जाल है ||
चोरन की चण्डाल चौकड़ी चम-चम चांदी काटते |
अपने अंधे भक्तों को भर - पेट रेवड़ी बांटते ||
अर्ध - अधूरे नंगे लूले सारे ढोलम - पोल हैं |
एक माँग पर बोले दो लो, मांगो दो तो चार है |
महानपुन्सक, महानिकम्मा हल्ला करते ढोलहैं ||
एक माँग पर बोले दो लो, मांगो दो तो चार है |
महाढपोरी शंख हैं मन्त्री , दो-धारी तलवार है ||
सांपनाथ औ नागनाथ के काटे का बस एक उपाय
गुनी बुलाना, धुनी रमाना झाड़ू से ही झाड़ा जाय ||
गुनी बुलाना, धुनी रमाना झाड़ू से ही झाड़ा जाय ||
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