Thursday, 22 November 2012

ललित-चैत्य में लंठ, शिल्पशाला में पत्थर-रविकर

ठोकर लग जाये अगर, देते मिटा पहाड़ |
अपनी कुटिया के लिए, जंगल रहे उजाड़ |

जंगल रहे उजाड़, स्वार्थ में होकर अंधे |
गर्त-धरा-नभ फाड़, करे नित काले धंधे |

 ललित-चैत्य में लंठ, शिल्पशाला में पत्थर |
भवनों में मक्कार, मारते चलते ठोकर ||  

2 comments:

  1. बहुत बढ़िया, मगर इनमें भगवान भी होते हैं, जो सच्ची राह बताते हैं!

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  2. ललित-चैत्य में लंठ, शिल्पशाला में पत्थर ।
    भवनों में मक्कार, मारते चलते ठोकर ।।

    सत्य का रहस्योद्घाटन !
    रजत-चप्पलिका से वज्र-प्रहार !!

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