"चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता" अंक -२०
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पानी जैसा धन बहा, मरते डूब कपूत ।
हुई कहावत बेतुकी, और आग मत मूत ।
और आग मत मूत, हिदायत गाँठ बाँध इक ।
बदल कहावत आज, खर्च पानी धन माफिक ।
कह रविकर कविराय, सिखाई दादी नानी ।
बन जा पानीदार, सुरक्षित रखना पानी ।।
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विधाता (शुद्धगा) छंद. (यगण + गुरु)x 4 घमंडी का सदा नीचा हुआ है सर सभी जानें । अकारथ ही बहा पानी हमारे घर गुशल-खाने । संभालो अब अगर अब भी हिदायत यह नहीं माने । मरोगे सब करोगे क्या अगर वर्षा उलट ठाने । विष्णुपद छंद
(अभ्यास किया है )
द्वि-चरणों के चिन्ह, पादोदक, भक्त हटे पा के ।
प्रतियोगिता भिन्न, मनमोहक, चित्र छापा ला के ।
आदरणीय नमन, महोत्सव, कहाँ छुपे जा के ।
आभारी रविकर, विष्णुपद, सिखा गए आ के ।।
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कुंडली और छंद दोनो जोरदार।
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