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देह देहरी देहरा, दो, दो दिया जलाय ।
कर उजेर मन गर्भ-गृह, कुल अघ-तम दहकाय ।
कुल अघ तम दहकाय , दीप दस घूर नरदहा ।
गली द्वार पिछवाड़ , खेत खलिहान लहलहा ।
देवि लक्षि आगमन, विराजो सदा हे हरी ।
सुख सामृद्ध सौहार्द, बसे कुल देह देहरी ।।
देह, देहरी, देहरा = काया, द्वार, देवालय
घूर = कूड़ा
लक्षि = लक्ष्मी
अति सुंदर!
ReplyDeleteप्रभु.... मन जीवन रोशन करे ......
ReplyDeleteBEHATARIN CHHAND ..... YON LIKHATE RAHIYE PADHANA SUKHAD LAGATA HAI ..
ReplyDeleteदिपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteसांस्कृतिक थाती बन खड़ी है यह रचना इस पर्व की .
ReplyDeleteबधाई शुभ दिवाली की निकले दिवाला उस रुकी हुई घड़ी से चहरे वाली कमान हाई का ,बिना सुइयों वाले उस निर्भाव उल्लासहीन चहरे का जो डेंगू मच्छर की तरह खून चूसे है आम आदमी का .,बोले तो -मोहन मन हैं लोग .
yah dipawali apake bhitar ke tam ko bhi dahaka de, dipawali ki hardik shubhakmana.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteमन के सुन्दर दीप जलाओ******प्रेम रस मे भीग भीग जाओ******हर चेहरे पर नूर खिलाओ******किसी की मासूमियत बचाओ******प्रेम की इक अलख जगाओ******बस यूँ सब दीवाली मनाओ
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteमन के सुन्दर दीप जलाओ******प्रेम रस मे भीग भीग जाओ******हर चेहरे पर नूर खिलाओ******किसी की मासूमियत बचाओ******प्रेम की इक अलख जगाओ******बस यूँ सब दीवाली मनाओ