जब तक दुनिया है सखे, तब तक पत्थर राज |
पत्थर से टकराय के, लौटे हर आवाज ||
लौटे हर आवाज, लिखाये किस्मत लोढ़े,
कर्मों पर विश्वास, करे क्या किन्तु निगोड़े ?
कोई नहीं हबीब, मिला जो उसको अबतक,
जिए पत्थरों बीच, रहेगा जीवन जब तक ||
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काका हाथरसी
काकी की चलती रही, काका पर शमशीर |
बेलन से पिटते रहे, खाई फिर भी खीर | खाई फिर भी खीर, तीर काकी के आकर|
बने कलम के वीर, धरा पूरी महका कर |
पर रविकर इक बात, बता बाँकी की बाकी |
मिली कहाँ से तात, आपको ऐसी काकी ||
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घनाक्षरी
खनन उपक्रम का, बेबस राजधर्म का
लूट-तंत्र बेशर्म का, सुवाद अंगूरी है | राजपाट पाय-जात, धरती का खोद-खाद लूट-लूट खूब खात, मिलती मंजूरी है | कहीं कांगरेस राज, भाजप का वही काज छोट न आवत बाज, भेड़-चाल पूरी है | चट्टे-बट्टे थैली केर, सारे साले एक मेर, देर नहिं अंधेर है, आम मजबूरी है || |
जब तक दुनिया है सखे, तब तक पत्थर राज...
ReplyDeleteपत्थर राज की सब माने ,न माने गिरेगी गाज!!!
शुभकामनायें!
सटीक और सामयिक प्रस्तुति!
ReplyDeleteचट्टे-बट्टे थैली केर, सारे साले एक मेर,
ReplyDeleteदेर नहिं अंधेर है, आम मजबूरी है ||
सटीक और सामयिक ।
काका हाथरसी और काकी की याद में कुटली बढिया लगी ।
वाह वाह क्या बात है .बेशर्मों पे कुठाराघात है, आवत नहीं फिर भी लाज है .कांग्रेसी "बाज़ "हैं .
ReplyDeleteघनाक्षरी
खनन उपक्रम का, बेबस राजधर्म का
लूट-तंत्र बेशर्म का, सुवाद अंगूरी है |
राजपाट पाय-जात, धरती का खोद-खाद
लूट-लूट खूब खात, मिलती मंजूरी है |
कहीं कांगरेस राज, भाजप का वही काज
छोट न आवत बाज, भेड़-चाल पूरी है |
चट्टे-बट्टे थैली केर, सारे साले एक मेर,
देर नहिं अंधेर है, आम मजबूरी है ||