रविकर गिरगिट एक से, दोनों बदलें रंग | रहे गुलाबी ख़ुशी मन, हो सफ़ेद जब दंग |
हो सफ़ेद जब दंग, रचे रचना गड़बड़ सी | झड़े हरेरी सकल, होय गर बहसा-बहसी |
सुबह क्रोध से लाल, शाम पीला हो डरकर | है बदरंगी हाल, कृष्ण-काला मन रविकर ||
गुरूजी के साथ
अविनाश वाचस्पति और संतोष त्रिवेदी के साथ
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जो खुद के साथ मजाक कर लेता है ज़िंदा दिल वही होता है
ReplyDeleteदेखो रविकर भाई को खुद से करे मज़ाक ,.