Wednesday, 28 November 2012

दे देते हैं जख्म, कटकहे कितने ब्लॉगर -



 ब्लॉगर होते जा रहे, पॉलिटिक्स में लिप्त |
राजग यू पी ए भजें, मिला मसाला तृप्त |

मिला मसाला तृप्त, उठा ले लाठी डंडा |
बने प्रचारक पेड, चले लेखनी प्रचंडा |

धैर्य नम्रता ख़त्म, दांत पीसे अब रविकर |
दे देते हैं जख्म, कटकहे कितने ब्लॉगर -


पैरों पर होना खड़े, सीखो सखी जरुर-

पैरों पर होना खड़े, सीखो सखी जरुर ।
 आये जब आपात तो,  होना मत मजबूर ।
 होना मत मजबूर, सिसकियाँ नहीं सहारा ।
कन्धा क्यूँकर खोज, सँभालो जीवन-धारा ।
समय हुआ विपरीत, भरोसा क्यूँ गैरों पर ?
 खुद से लिखिए जीत, खड़ी हो खुद पैरों पर ।।


रविकर गिरगिट एक से, दोनों बदलें रंग-

 रविकर गिरगिट एक से, दोनों बदलें रंग |
रहे गुलाबी ख़ुशी मन, हो सफ़ेद जब दंग |


हो सफ़ेद जब दंग, रचे रचना गड़बड़ सी |
झड़े हरेरी सकल, होय गर बहसा-बहसी |

सुबह क्रोध से लाल, शाम पीला हो डरकर |
 है बदरंगी हाल, कृष्ण-काला मन रविकर ||

 


 मोदी को करके खफा, योगी को नाराज ।
घर से बाहर "जेठ" कर, चली बचाने लाज ।
चली बचाने लाज, केजरी देवर प्यारा ।
चूमा-चाटी नाज, बदन जब नगन उघारा ।
हुई फेल सब सोच, बिठा नहिं पाई गोदी ।
बचे हुवे अति हीन, विरोधी दिखते मोदी ।।


5 comments:

  1. दिल आप का लगता है ,आज भरा भरा
    रविकर के ल्ख्मों को ,किसने किया आज हरा!

    आप के स्नेह के लिए
    आभार !

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  2. रविकर जी आप जैसी कुण्डलियाँ लिखने वाले अब बिरले ही बचे हैं...काका हाथरसी जैसी भाषा और सिद्धता है आपकी कुंडलियों में...सभी कुण्डलियाँ एक से बढ़ कर एक हैं...मेरी ढेरों बधाई स्वीकारें...एक बात कह दूं आप अच्छे ब्लोगर्स के बारे में भी तो लिखिए...खराबों की माना बहुलता है लेकिन अच्छे भी इक्का दुक्का तो हैं हीं...जैसे एक आप और एक मैं....हा हा हा हा हा

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  3. रविकर जी, नहीं मालूम की आपने किस परिपेक्ष में पहला दोहा लिखा, मगर मैं थोडा अलग अंदाज में कहूंगा;

    खोदी खादी पोश लुटेरों ने,भ्रष्टाचार की खान,
    राजग,यूपीए का इसीलिए करो सब गुणगान !
    करो सब गुणगान, भ्रष्टो की शठ,कुटिलाई का
    जन-जन जागृत हो, है यह काम भलाई का !!

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  4. ब्लॉगर होते जा रहे, पॉलिटिक्स में लिप्त |
    राजग यू पी ए भजें, मिला मसाला तृप्त |

    मिला मसाला तृप्त, उठा ले लाठी डंडा |
    बने प्रचारक पेड, चले लेखनी प्रचंडा |

    धैर्य नम्रता ख़त्म, दांत पीसे अब रविकर |
    दे देते हैं जख्म, कटकहे कितने ब्लॉगर -

    कटखने (कुत्ते ब्लॉगर ),पेड़ होते हैं भैया बड़े उपकारी भैया .

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  5. नेताओं के ढंग सब ,लड़ो केजरी संग ,

    जीत दोनों की होगी ,

    प्रीत ऐसे ही होगी .

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