सलाह
जिभ्या का व्यायाम हो, हो दमड़ी नहिं खर्च | समय बिता ले मजे से, करती बुद्धि रिसर्च | करती बुद्धि रिसर्च, लोग विद्वान समझते | बढ़ता खुद का दर्प, सँभल कर लोग निकलते | बाजे थोथा घना, चना करवा दे फांका | क्रियाशील रस-ग्रंथि, स्वाद बढ़ता जिभ्या का || |
अनुभव
जाना है तो एक दिन, दनदनाय दिन बीत |
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उम्मीदों का जल रहा, देखो सतत चिराग |
घृत डालो नित प्रेम का, बनी रहे लौ-आग | बनी रहे लौ-आग, दिवाली चलो मना ले | अपना अपना दीप, स्वयं अंतस में बालें | भाई चारा बढे, भरोसा प्रेम सभी दो | सुख शान्ति-सौहार्द, बढ़ो हरदम उम्मीदों || |
स्वर्ण अशरफ़ी सा रखो, रिश्ते हृदय संजोय ।
हृदय-तंतु संवेदना, कहीं जाय ना खोय ।
कहीं जाय ना खोय, गगन में पंख पसारो ।
उड़ उड़ ऊपर जाय, धरा को किन्तु निहारो ।
रिश्ते सभी निभाय, रहें नहिं केवल हरफ़ी
कहीं जाय ना खोय, हमारी स्वर्ण अशरफ़ी ।।
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