कवि-लीडर
ताली गाली से सदा, इनका सरोकार |
बाता-बाती में नहीं, कोई पाए पार | कोई पाए पार, मगर लीडर दे टक्कर | लफ्फाजी व्यापार, काम इक करता हटकर | खोज माल असबाब, खजाना करता खाली | लेकिन कवि की जात, खोज नहिं पाता ताली || |
शादी
चाहें दोनों तरफ ही, मार रही थी जोर |
बन्दा बड़ा उजड्ड पर, ये बन्दी मुंहचोर | ये बन्दी मुंहचोर, बनाई है अब बन्दी | नाच नचाये जोर, देख चुपचाप बुलंदी | लड्डू लीन्हा खाय, दांत का दर्द कराहे | वही डाक्टर तोर, मिटाए जो वो चाहे || |
2014 - का चुनाव
छूछ आग से 'के-जरी', जे 'गुट-करी' जनाब | 'सोनी-या' रोनी शकल, करती काम खराब | करती काम खराब, बड़ा डेंगू है फैला | सुबह कपाली काँख, फाँक ले सूखा मैला | मत घबराना किन्तु, वोट तो मिलें भाग से | नाती पुत्र दमाद, डरें नहीं छूछ आग से || |
व्यंग से भरी ...पर सच्ची कुंडलियाँ ...:-))))
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!