Friday, 25 January 2013

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -1


दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर
वरिष्ठ तकनीकी सहायक
इंडियन स्कूल ऑफ़ माइंस
धनबाद झारखण्ड

पिता:  स्व. सेठ लल्लूराम जी गुप्ता
माता : स्व. मुन्नी देवी

धर्म-पत्नी : श्रीमती सीमा गुप्ता
सुपुत्र : कुमार शिवा ( सहायक प्रबंधक , TCIL,  नई  दिल्ली  )
सुपुत्री : 1. मनु गुप्ता (ASE, TCS लखनऊ )
2. स्वस्ति-मेधा ( B Tech केमिकल इंजी )
(ग्रीन वैली -शिमला -कुफरी )
जन्म स्थान : पटरंगा मंडी  जिला फैजाबाद  उत्तर प्रदेश
जन्म तिथि : 15 अगस्त 1960

   

 कुंडली 
रविकर नीमर नीमटर, वन्दे हनुमत नाँह ।
विषद विषय पर थामती, कलम वापुरी बाँह ।
 
कलम वापुरी बाँह, राह दिखलाओ स्वामी ।

शांता का दृष्टांत, मिले नहिं अन्तर्यामी ।
 
बहन राम की श्रेष्ठ, उपेक्षित त्रेता द्वापर ।
रचवा दो शुभ-काव्य, क्षमा मांगे अघ-रविकर ।

( नीमटर=किसी विद्या को कम जानने वाला 
नीमर=कमजोर ) 
सर्ग-1
भाग-1 
अयोध्या  
Om
सोरठा 

वन्दऊँ पूज्य गणेश, एकदंत हे गजबदन  |
जय-जय जय विघ्नेश, पूर्ण कथा कर पावनी ||1||

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhpHDLIjRRmv6OtbyyRy5JyKCB_tJT7gCiY1vjd6tF-tkUCVo0hLDaEFIKLaiUv2i59z37XFBPYIysFvLKq9-86JdBrTUH9yADmUj0LAGhqAm57ocTGRIwnU__zEb1NcPFv-H_hVhUpjyI/s1600/shree-ganesh.jpg

वन्दौं गुरुवर श्रेष्ठ, कृपा पाय के मूढ़-मति,
गुन-गँवार ठठ-ठेठ, काव्य-साधना में रमा ||2||

गोधन-गोठ प्रणाम, कल्प-वृक्ष गौ-नंदिनी |
गोकुल चारो धाम, गोवर्धन-गिरि पूजता ||3||

वेद-काल का साथ, गंगा सिन्धु सरस्वती |
ईरानी हेराथ, है सरयू समकालिनी ||4||

राम-भक्त हनुमान,  सदा विराजे अवधपुर |
सरयू होय नहान, मोक्ष मिले अघकृत तरे ||5||

 करनाली का स्रोत्र, मानसरोवर अति-निकट |
करते जप-तप होत्र, महामनस्वी विचरते ||6||

क्रियाशक्ति भरपूर, पावन भू की वन्दना |
राम भक्ति में चूर, मोक्ष प्राप्त कर लो यहाँ ||7||

सरयू अवध प्रदेश, दक्षिण दिश में बस रहा |
हरि-हर ब्रह्म सँदेश, स्वर्ग सरीखा दिव्यतम ||8||

पूज्य अयुध  भूपाल, रामचंद्र के पित्र-गण |
गए नींव थे डाल, बसी अयोध्या पावनी ।। 9।।

दोहा 

शुक्ल पक्ष की तिथि नवम, पावन कातिक मास |
होय नगर की परिक्रमा, मन श्रद्धा-विश्वास ||

मर्यादा आदर्श गुण, अपने हृदय उतार |
राम-लखन के सामने, लम्बी लगे कतार |।

  पुरुषोत्तम सरयू उतर, होते अंतर्ध्यान |
त्रेता युग का अवध तब, हुआ पूर्ण वीरान |।

 सद्प्रयास कुश ने किया, बसी अयोध्या वाह |
 सदगृहस्थ वापस चले, पुन: अवध की राह |।

 कृष्ण रुक्मणी अवध में, आये द्वापर काल |
पुरुषोत्तम के चरण में, गये सुमन शुभ डाल ||

कलयुग में सँवरी पुन:, नगरी अवध महान |
वीर विक्रमादित्य से, बढ़ी नगर की शान ||

देवालय फिर से बने, बने सरोवर कूप |
स्वर्ग सरीखा सज रहा, अवध नगर का रूप ||


सोरठा  


माया मथुरा साथ, काशी काँची द्वारिका |
महामोक्ष का पाथ, अवंतिका शुभ अवधपुर ||10||

अंतरभूमि  प्रवाह, सरयू सरसर वायु सी
संगम तट निर्वाह,  पूज घाघरा शारदा ||11||

पुरखों का इत वास, तीन कोस बस दूर है |
बचपन में ली साँस, यहीं किनारे खेलता ||12||

परिकरमा श्री धाम, हर फागुन में हो रहा ।
पटरंगा मम-ग्राम, चौरासी कोसी  परिधि ||13||

थे दशरथ महराज, उन्तालिस निज वंश के |
रथ दुर्लभ अंदाज, दशों दिशा में हांक लें ||14||

पिता-श्रेष्ठ 'अज' भूप, असमय स्वर्ग सिधारते |
 निकृष्ट कथा कुरूप, मातु-पिता चेतो सुजन  ||15||
निवेदन : 
आदरणीय ! आदरेया  !!
मात्राओं को सुधारने में सहयोग करें ।
अपार कृपा होगी ।। 

11 comments:

  1. सपरिवार सैर अच्छी बात है।
    मालिक सबको देर तक साथ बनाए रखे,
    आमीन !

    ReplyDelete
  2. अनूठे, दुर्लभ ग्रंथ की रचना के लिए अग्रिम बधाई स्वीकार करें कविवर।

    ReplyDelete
  3. गुप्ता जी प्रणाम ---परिचय और परिभ्रमण साथ -साथ | बधाई

    ReplyDelete
  4. आदरणीय क्षमा याचना सहित, मेरे विचार से मात्रा की गणना इस प्रकार होनी चाहिए फिर भी किसी विज्ञ से परामर्श अवश्य प्राप्त कर लें -

    वन्दऊँ गुरुवर श्रेष्ठ=12, रामचंद्र के पूर्वज=12,काशी कांची अवंतिका=14,परिक्रमा श्री धाम=10,होय सदा हर फाल्गुन=12,

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय आभार -
      ये हुई न बात-
      ठीक कर रहा हूँ-
      आगे भी आपका सहयोग मिलता रहे-
      थोडा थोडा भाग ही पोस्ट करूँगा -
      सादर -

      Delete
    2. सुझाये गए संशोधन कर दिए हैं-
      बहुत बहुत आभार-
      एक बार पुन: देख ले,
      सादर ||

      Delete
  5. परिचय और पुरे परिवार का फोटो साथ में,बहुत ही अच्छा लगा।सोरठा भी बहुत ही सार्थक है।

    ReplyDelete
  6. वाह! जम रहे हैं जनाब
    दाढी़ और मूँछ के साथ !

    ReplyDelete
  7. बहन शांता श्रेष्ठ @ मेरी गणना के अनुसार 10 मात्रा हो रही है

    ReplyDelete
  8. सर जी, बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ,"जिन्दगी उलझ कर रह गई है B स न ल के जाल में ,क्या लिखे टिप्पड़ी कोई ,बीएसएनएल के जंजाल में ......" .

    ReplyDelete