पेशी ओ-वेशी भड़क, बोले न्यायाधीश ।
बके गालियाँ राम को, लेकिन देख खबीस । लेकिन देख खबीस, *राम दो दो हैं आये । दे दलील वे किन्तु, जमानत हम ठुकराए । नियमबद्ध अन्यथा, एक क्षण भी है वेशी । करदूं काम-तमाम, आखिरी होती पेशी ।। * दोनों वकीलों के नाम में राम |
बाप चुके थे बाट, बाट मत अब ओ बेशी-
ओ-वेशी मत बकबका, मुहाजिरों को देख |
सर्वाइव कैसे करें, शिया मियां कुल शेख | शिया मियां कुल शेख, पाक की हालत बदतर | इत मुस्लिम खुशहाल, किसी से हैं क्या कमतर ? विश्लेषण अनुसार, हिन्दु है बड़ा हितैषी | बाप चुके थे बाट, बाट मत अब ओ बेशी ||
Kulwant Happy
ओ वेशी मत बकबका, सह ले सह अस्तित्व ।
जीवन की कर बात रे, क्यूँकर घेरे मृत्यु ।
क्यूँकर घेरे मृत्यु , बात कर सौ करोड़ की ।
लानत सौ सौ बार, बंद कर बन्दर घुड़की ।
कन्वर्टेड इंसान, पूर्वज तेरे देशी ।
कर डी एन ए मैच, बकबका मत ओ वेशी ।।
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वेशी ले गुजरा-त-मकु, आ-मोदी तूफ़ान-
वेशी ले गुजरा-त-मकु, आ-मोदी तूफ़ान ।
ला-ओ-वेशी ठान के, मिनटों में कल्यान ।
मिनटों में कल्यान, कहे घेरे बीमारी ।
भोगे हिन्दुस्तान, मरे जनता बेचारी ।
तेरी है सरकार, झूठ की कैसी पेशी ।
है गलबहियां डाल, कहूँ राहुल क्या वेशी ??
तमकु = चिढ़कर
मकु=कदाचित
वेशी = अधिक |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
दाढ़ी के इस वेश में, बहुत जँच रहे आप।
ReplyDeleteमकर संक्रान्ति के अवसर पर
उत्तरायणी की बहुत-बहुत बधाई!