बाशिंदे अतिशय सरल, धरम-करम से काम ।
सरल हृदय अपना बना, देखे उनमें राम ।
देखे उनमें राम, नम्रता नहीं दीनता ।
दीन धर्म ईमान, किसी का नहीं छीनता ।
पाले हिन्दुस्थान, युगों से जीव-परिंदे ।
यह सभ्यता महान, बोल अब तो-बा-शिंदे ।।
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तो-बा-शिंदे बोल तू , तालिबान अफगान ।
काबुल में विस्फोट कर, डाला फिर व्यवधान ।
डाला फिर व्यवधान, यही क्या यहाँ हो रहा ?
होता भी है अगर, वजीरी व्यर्थ ढो रहा ।
फूट व्यर्थ बक्कार, इन्हें चुनवा दे जिन्दे ।
होवे खुश अफगान, पाक के तो बाशिंदे ।।
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Bahut khoob !
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteप्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।
प्रभावशाली ,
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आर्यावर्त
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