व्याकुल वनिता वत्स, महाकामी *वत्सादन ।
काट गया दो शीश, वीर रस हुआ भयानक ।।
*भेड़िया
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चखना था श्रृंगार रस, हो जाता वीभत्स ।
कहते गुरुवर यह नहीं, तेरे बस का वत्स ।
तेरे बस का वत्स, बैठ जा मार कुंडली ।
गली गली में भटक, ढूँढ़ता नाहक अगली ।
आजा रविकर पास, ध्यान नुक्कड़ का रखना ।
है अंग्रेजी-शॉप, साथ ले आना चखना ।।
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भयानक के बाद ही वीरता का संचार होता है!
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बढ़िया छन्द-सार्थक टिप्णियाँ!
Sir Ji, sabhi panktiyan me nihit bahuaayami sundar bhavo se susajjit prastuti
ReplyDeleteप्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई.