Saturday, 23 February 2013

जवानी धर्म से भटके, हुआ वह शर्तिया "भटकल"-

लगा ले मीडिया अटकल, बढ़े टी आर पी चैनल ।
 जरा आतंक फैलाओ, दिखाओ तो तनिक छल बल ।।

फटे बम लोग मर जाएँ, भुनायें चीख सारे दल ।
धमाके की खबर तो थी, कहे दिल्ली बताया कल ॥

 हुआ है खून सादा जब, नहीं कोई दिखे खटमल ।
घुटाले रोज हो जाते, मिले कोई नहीं जिंदल ।।

कहीं दोषी बचें ना छल, अगर सत्ता करे बल-बल ।
नहीं आश्वस्त हो जाना, नहीं होनी कहीं हलचल ॥ 

जवानी धर्म से भटके, हुआ वह शर्तिया "भटकल" ।
मरे जब लोग मेले में, उड़ाओ रेल मत नक्सल ॥ 




कल गुरू को मूँदा था, आज चेलों ने रूँदा है-
पिलपिलाया गूदा है ।
छी बड़ा बेहूदा  है । ।

मर रही पब्लिक तो क्या -
आँख दोनों मूँदा है ॥

जा कफ़न ले आ पुरकस
इक फिदाइन कूदा है ।

कल गुरू को मूँदा था
आज चेलों ने रूँदा है ॥

पाक में करता अनशन-
मुल्क भेजा फालूदा है ॥
 

6 comments:

  1. जवानी धर्म से भटके, हुआ वह शर्तिया "भटकल" ।
    मरे जब लोग मेले में, उड़ाओ रेल मत नक्सल ॥
    वहा बहुत खूब

    मेरी नई रचना

    महकती खुशबू

    प्रेमविरह

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  2. फटे बम लोग मर जाएँ, भुनायें चीख सारे दल ।
    धमाके की खबर तो थी,कहे दिल्ली बताया कल॥
    क्या खुब लिखा गुरुवार,बहुत ही सुन्दर.

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  3. खटमल तो हैं पर ये मसले कब जाएंगे, कोई जवाब नहीं

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  4. वाह क्या खूब ,जवानी धर्म से भटके, हुआ वह शर्तिया "भटकल" ।
    मरे जब लोग मेले में, उड़ाओ रेल मत नक्सल ॥

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