लोक-तंत्र
*सराजाम सारा जमा, रही सुरसुरा ^सारि |
सुधा-सुरा चौसर जमा, जाम सुरासुर डारि |
जाम सुरासुर डारि, खेलते दे दे गारी |
पौ-बारह चिल्लाय, जीत के बारी बारी |
जो सत्ता हथियाय, सुधा पी देखे मुजरा |
जन-गण जाये हार, दूसरा मद में पसरा ।।
*सामग्री ^चौपड़ की गोटी
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बहुत सुन्दर और सटीक," पंजे पर पंजा रहे,कसे सिकंजा
ReplyDeleteजोर, ढपली रानी बजा रही ,राजा भकुआ चोर,करे नित
सीना जोरी........सत्ता मद में चूर ,नहीं इन पर जन भरी,
रोज बैठ कर पीठ हमारे ,नित करे सवारी .....
bahut khub ji
ReplyDeleteगुज़ारिश : ''कुछ मीठा हो जाए.............''
वाह ! गहरा व्यंग्य..
ReplyDeleteवाह..!
ReplyDeleteचित्र और कुण्डलियाँ दोनो बढ़िया हैं!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल रविवार 10-फरवरी-13 को चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है.
ReplyDeleteप्रभावी व्यंग्य
ReplyDeleteवाह वाह बहुत खूब ,बधाई आपको
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