अब-तक
दशरथ की अप्सरा-माँ स्वर्ग गई दुखी पिता-अज ने आत्म-हत्या करली ।
पालन-पोषण गुरु -मरुधन्व के आश्रम में नंदिनी का दूध पीकर हुआ ।।
कौशल्या का जन्म हुआ-कौसल राज के यहाँ -
रावण ने वरदान प्राप्त किये-
कौशल्या को मारने की कोशिश- दशरथ द्वारा प्रतिकार- दशरथ कौशल्या विवाह -- लिंक - |
भाग-5
रावण के क्षत्रप
रावण के क्षत्रप
सोरठा
रास रंग उत्साह, अवधपुरी में खुब जमा |
उत्सुक देखे राह, कनक महल सजकर खड़ा ||
चौरासी विस्तार, अवध नगर का कोस में |
अक्षय धन-भण्डार, हृदय कोष सन्तोष धन |
पाँच कोस विस्तार, कनक भवन के अष्ट कुञ्ज |
इतने ही थे द्वार, वन-उपवन बारह सजे ||
शयन-केलि-श्रृंगार, भोजन-कुञ्ज-स्नान-कुञ्ज |
झूलन-कुञ्ज-बहार, अष्ट कुञ्ज में थे प्रमुख ||
चम्पक-विपिन-रसाल, पारिजात-चन्दन महक |
केसर-कदम-तमाल, नाग्केसरी-वन विचित्र ||
केसर-कदम-तमाल, नाग्केसरी-वन विचित्र ||
लवंगी-कुंद-गुलाब, कदली चम्पा सेवती |
वृन्दावन नायाब, उपवन जूही माधवी ||
घूमें सुबहो-शाम, कौशल्या दशरथ मगन |
इन्द्रपुरी सा धाम, करें देवता ईर्ष्या ||
रावण के उत्पात, उधर झेलते साधुजन |
बैठ लगा के घात, कैसे रोके शत्रु-जन्म ||
मायावी इक दास, आया विचरे अवधपुर |
करने सत्यानाश, कौशल्या के हित सकल ||
चार दासियों संग, कौशल्या झूलें मगन |
उपवन मस्त अनंग, मायावी आया उधर ||
धरे सर्प का रूप, शाखा पर जाकर डटा |
पड़ी तनिक जो धूप, सूर्य-पूर्वज ताड़ते ||
महा पैतरेबाज, सिर पर वो फुफ्कारता |
दशरथ सुन आवाज, शब्द-भेद कर मारते ||
रावण के षड्यंत्र, यदा-कदा होते रहे |
जीवन के सद-मंत्र, सूर्य-वंश आगे चला ||
गुरु-वशिष्ठ का ज्ञान, सूर्यदेव के तेज से |
अवधपुरी की शान, सदा-सर्वदा बढ़ रही ||
रावण रहे उदास, लंका सोने की बनी |
करके कठिन प्रयास, धरती पर कब्ज़ा करे ||
जीते जो भू-भाग, क्षत्रप अपने छोड़ता |
निकट अवध संभाग, खर-दूषण को सौंप दे ||
खर-दूषण बलवान, रावण सम त्रिशिरा विकट |
डालें नित व्यवधान, गुप्त रूप से अवध में ||
त्रिजटा शठ मारीच, मठ आश्रम को दें जला |
भूमि रक्त से सींच, हत्या करते साधु की ||
कुत्सित नजर गढ़ाय, राज्य अवध को ताकते |
खबर रहे पहुँचाय, आका लंका-धीश को ||
गए बरस दो बीत, कौशल्या थी मायके |
पड़ी गजब की शीत, 'रविकर' छुपते पाख भर ||
जलने लगे अलाव, जगह-जगह पर राज्य में |
दशरथ यह अलगाव, सहन नहीं कर पा रहे ||
भेजा चतुर सुमंत्र, विदा कराने के लिए |
रचता खर षड्यंत्र, कौशल्या की मृत्यु हित ||
असली घोडा मार, लगा स्वयं रथ हाँकने ||
कौशल्या असवार, अश्व छली लेकर भगा ||
धुंध भयंकर छाय, हाथ न सूझे हाथ को |
रथ तो भागा जाय, मंत्री मलते हाथ निज ||
कौशल्या हलकान, रथ की गति अतिशय विकट |
रस्ते सब वीरान, कोचवान ना दीखता ||
समझ गई हालात, बंद पेटिका याद थी |
ढीला करके गात, जगह देख कूदी तुरत ||
लुढ़क गई कुछ दूर, झाड़ी में जाकर छुपी ||
चोट लगी भरपूर, होश खोय बेसुध पड़ी ||
मंत्री चतुर सुजान, दौड़ाए सैनिक सकल |
देखा पंथ निशान, झाड़ी में सौभाग्य से ||
लाया वैद्य बुलाय, सेना भी आकर जमी |
नर-नारी सब धाय, हाय-हाय करने लगे ||
खर भागा उत जाय, मन ही मन हर्षित भया |
अपनी सीमा आय, रूप बदल करके रुका ||
रथ खाली अफ़सोस, गिरा भूमि पर तरबतर |
रही योजना ठोस, बही पसीने में मगर ||
रानी डोली सोय, अर्ध-मूर्छित लौटती |
वैद्य रहे संजोय, सेना मंत्री साथ में ||
दशरथ उधर उदास, देरी होती देखकर |
भेजे धावक ख़ास, समाचार लेने गए ||
दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर
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आदरणीय ! आदरेया !!
मात्राओं को सुधारने में सहयोग करें ।
अपार कृपा होगी ।।
आपने सहयोग दिया-आभार आदरणीय ।।
बहुत सुदर रविकर जी ! मात्रयों की चिंता मत कीजिये .
ReplyDeleteLatest postअनुभूति : चाल ,चलन, चरित्र (दूसरा भाग )
बहुत ही सुन्दर, श्रृंखला बद्ध भाव संयोजन ,
ReplyDeleteउम्दा रिसर्च.
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