जब कभी रस्ता चले ।
फब्तियां कसता चले ।।
जान जोखिम में मगर-
मस्त-मन हँसता चले ।।
अब बजट में आदमी -
हो गया सस्ता चले ।।
मौत मंहगी हो गई -
हाल कुछ खस्ता चले ।।
दस किलो की बालिका
बीस का बस्ता चले |
गुल खिलाते ही रहे
किन्तु गुलदस्ता चले |
तेज रविकर का बढ़ा -
चाँद पर बसता चले ॥
फब्तियां कसता चले ।।
जान जोखिम में मगर-
मस्त-मन हँसता चले ।।
अब बजट में आदमी -
हो गया सस्ता चले ।।
मौत मंहगी हो गई -
हाल कुछ खस्ता चले ।।
दस किलो की बालिका
बीस का बस्ता चले |
गुल खिलाते ही रहे
किन्तु गुलदस्ता चले |
तेज रविकर का बढ़ा -
चाँद पर बसता चले ॥
अब बजट में आदमी -
ReplyDeleteहो गया सस्ता चले ।।
मौत मंहगी हो गई -
हाल कुछ खस्ता चले ।।
बहुत खूब !
latest post होली
आदरणीय गुरुदेव श्री प्रणाम, वाह क्या बात है छोटी बहर में शानदार अशआरों को पिरोती लाजवाब रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteबहुत खूब सुन्दर लाजबाब अभिव्यक्ति।।।।।।
ReplyDeleteमेरी नई रचना
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
आस्तीं में पल रहा
ReplyDeleteसर्प सा डसता चले |
बाँटता है अश्कोगम
खुद मगर हँसता चले |
बात मतलब की रविकर
ReplyDeleteहमेशा ही करता चले .....!
मुबारक हो !
..रविकर जी!'अब बजट में आदमी -
ReplyDeleteहो गया सस्ता चले ।।'...हकीकत है...यथार्थ है...आभार!
पांच वर्षीय यह आदमी क्या करें ? मजबूर
ReplyDeleteबढ़िया गुरुवार | बधाई
ReplyDeleteआदमी तो सस्ता पहले ही था आज और सस्ता हो गया,जिंदगी की दुश्वरिओं का भरी बस्ता हो गया ,
ReplyDeleteलचर था मजबूर था,खौफ का मज्मूम था पहले ही वो
आज दर्द का वो एक सिसकत गुलदस्ता हो गया
जान जोखिम में मगर-
ReplyDeleteमस्त-मन हँसता चले ..
बहुत खूब ... छोटी बहर का कमाल ... हर शेर तीखा ... तेज ... तर्र्रार ... मज़ा आ गया ..