Saturday, 2 March 2013

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -11


सर्ग-3
भाग-1 अ
शान्ता के चरण
चले घुटुरवन शान्ता, सारा महल उजेर |
राज कुमारी को रहे, दास दासियाँ घेर ||

सबसे प्रिय लगती उसे, अपनी माँ की गोद |
माँ बोले जब तोतली, होवे परम-विनोद ||

कौला दालिम जोहते, बैठे अपनी बाट |
कौला पैरों को मले, हलके-फुल्के डांट ||

दालिम टहलाता रहे, करवाए अभ्यास |
बारह महिने में चली, करके सतत  प्रयास ||

हर्षित सारा महल था, भेज अवध सन्देश |
शान्ता के पहले कदम, सबको लगे विशेष ||

दशरथ कौशल्या सहित, लाये रथ को तेज |
पग धरते देखी सुता, पहुँची ठण्ड करेज ||

कौशल्या मौसी हुई, मौसा भूप कहाय |
सरयू-दर्शन का वहाँ, न्यौता देते जाय ||

एक  मास के बाद में, शान्ता रानी संग |
गए अवधपुर घूमने, देख प्रजा थी दंग ||

कौला को दालिम मिला, होनहार बलवान |
दासी सब ईर्ष्या करें, तनिकौ नहीं सुहान ||


प्रेम और विश्वास का, होय नहीं व्यापार ।
दंड-भेद से ना मिले, साम दाम वेकार ।।

स्नेह-समर्पण कर दिया, क्यों कुछ मांगे दास ?
 इच्छाएं कर दे दफ़न, मत करवा परिहास ।।

मौसा-मौसी  के यहाँ, रही शान्ता मस्त |
दौड़ा-दौड़ा के करे, कौला को वह पस्त ||

अपने घर फिर आ गई, एक पाख के बाद |
राजा ने पाया तभी, महा-मस्त संवाद ||

प्रथम चरण की धमक के, लक्षण बड़े महान |
हैं रानी चम्पावती,  इक शरीर दो जान ||

हर्षित भूपति नाचते, बढ़ा और भी प्यार |
ठुमक-ठुमक कर शान्ता, होती पीठ सवार ||

पैरों में पायल पड़े, झुन झुन बाजे खूब |
आनंदित माता पिता, गये प्यार में डूब ||

शान्ता माता से हुई, किन्तु तनिक अब दूर |
पर कौला देती उसे, प्यार सदा भरपूर ||

राजा भी रखते रहे, बेटी का खुब ध्यान |
 अंगराज को मिल गई, एक और संतान ||

रानी पाई पुत्र को, शान्ता पाई भाय |
देख देख के भ्रात को, मन उसका हरसाय ||

नारी का पुत्री जनम, सहज सरलतम सोझ |
सज्जन रक्षे भ्रूण को, दुर्जन मारे खोज ||

नारी  बहना  बने जो, हो दूजी संतान
होवे दुल्हन जब मिटे, दाहिज का व्यवधान ||

नारी का है श्रेष्ठतम, ममतामय  अहसास |
बच्चा पोसे गर्भ में,  काया महक सुबास ||

 कौला भी माता बनी , दालिम बनता बाप |
पुत्री संग रहने लगे, मिटे सकल संताप ||

फिर से कौला माँ बनी, पाई सुन्दर पूत |
भाई बहना की बनी, पावन जोड़ी नूत ||

शान्ता होती सात की, पांच बरस का सोम |
परम बटुक छोटा जपे, संग में सबके ॐ ||

कौला नियमित लेपती, औषधि वाला तेल |
दालिम रक्षक बन रहे, रोज कराये खेल ||

जबसे शान्ता है सुनी, गुरुकुल जाए सोम |
गुमसुम सी रहने जगी, प्राकृत हुई विलोम ||

माता से वह जिद करे, जाऊँगी उस ठौर |
भाई के संग ही रहूँ, यहाँ रहूँ ना और ||

माता समझाने लगी, कौला रही बताय |
यहीं महल में पाठ का, करती आज उपाय ||

गुरुकुल से आये वहाँ, तेजस्वी इक शिष्य |
सुधरे शांता संग ही, रूपा-बटुक भविष्य ||

दीदी का होकर रहे, कौला दालिम पूत |
 रक्षाबंधन में बंधे, उसको पहला सूत ||

बाँधे भैया सोम के, गुरुकुल में फिर जाय |
प्रभु से विनती कर कहे, हरिये सकल बलाय ||

दालिम को मिलती नई, जिम्मेदारी गूढ़ |
राजमहल का प्रमुख बन, हँसता जाए मूढ़ ||

दालिम से कौला कही, सुनो बात चितलाय |
भाई को ले आइये, माँ को लो बुलवाय ||

सुख में अपने साथ हों, संग रहे परिवार |
माता का आभार कर, यही परम सुविचार ||

संदेसा भेजा तुरत, आई सौजा पास |
बीती बातें भूलती, नए नए एहसास ||

छोटा भाई भी हुआ, तगड़ा और बलिष्ठ |
दालिम सा दिखता रमण, विनयशील अति-शिष्ट ||

रमण सुरक्षा हित चला, शान्ता पास तुरन्त |
 रानी माँ भी खुश हुई, देख शिष्ट बलवंत ||

सौजा रूपा बटुक का, हर पल रखती ध्यान |
रानी की सेवा करे, कौला इस दरम्यान ||

राज वैद्य आते रहे, करने को उपचार |
चार बरस में मिट गए, सारे अंग विकार ||


दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर वरिष्ठ तकनीकी सहायक
   इंडियन स्कूल ऑफ़ माइंस धनबाद झारखण्ड पिता:  स्व. सेठ लल्लूराम जी गुप्ता 
   माता : स्व. मुन्नी देवी   
 धर्म-पत्नी : श्रीमती सीमा गुप्ता  
सुपुत्र : कुमार शिवा ( सहायक प्रबंधक , TCIL,  नई  दिल्ली  )  
सुपुत्री : 1. मनु गुप्ता (ASE, TCS लखनऊ ) 2. स्वस्ति-मेधा ( B Tech केमिकल इंजी )
(ग्रीन वैली -शिमला -कुफरी )
जन्म स्थान : पटरंगा मंडी  जिला फैजाबाद  उत्तर प्रदेश
जन्म तिथि : 15 अगस्त 1960

9 comments:

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  2. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (02-03-2013) के चर्चा मंच 1172 पर भी होगी. सूचनार्थ

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  3. बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति हर्षित भूपति नाचते, बढ़ा और भी प्यार |
    ठुमक-ठुमक कर शान्ता, होती पीठ सवार ||

    पैरों में पायल पड़े, झुन झुन बाजे खूब |
    आनंदित माता पिता, गये प्यार में डूब ||

    शान्ता माता से हुई, किन्तु तनिक अब दूर |
    पर कौला देती उसे, प्यार सदा भरपूर ||

    राजा भी रखते रहे, बेटी का खुब ध्यान |
    अंगराज को मिल गई, एक और संतान |

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  4. दोहा छंद में लिखा गया यह काव्य बहुत लोकप्रिय होगा!

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  5. बहुत ही सुन्दर दोहे,आभार.

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  6. अद्भुत... पढना बहुत सुखद लगा. शुभकामनाएँ.

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  7. बहुत बढ़िया , सुंदर सरल भासा में आजकल कोई आप सा काव्य नहीं लिखता .

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  8. अति सुन्दर लिखा है..

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