तक तक कर पथरा गईं, आँखे प्रभु जी आज |
कब से रहा पुकारता, बैठे कहाँ विराज |
कब से रहा पुकारता, बैठे कहाँ विराज |
बैठे कहाँ विराज, हृदय से सदा बुलाया ।
नाम कृपा निधि झूठ, कृपा अब तक नहिं पाया |
सुनिए यह चित्कार, बुलाये रविकर पातक |
मिटा अन्यथा याद, याद प्रभु तेरी घातक ॥
वाह सर जी, किसे याद कर रहे हैं ? :)
ReplyDeleteबुलाये रविकर पातक...
ReplyDeleteham aa gaye bhai sahab.
Nice lines.
पल -पल की स्मृतिओं में है .शेष रविकर की कृतिओं में है ,
ReplyDeleteमत पूँछ नाम रे मूढ़ , नाम तुम पढ़ लेना ,तुम पढ़ लेना (गोदियाल जी की टिप्पड़ी से जुड़ा) सुन्दर कुण्डलियाँ
रविकर धीरज राखिए,रज मलिये सिर-माथ
ReplyDeleteउसकी दुनियाँ में सुनो , कोई नहीं अनाथ
कोई नहीं अनाथ , कर्म की गति है सारी
रुदन जहाँ हो आज,वहीं कल हो किलकारी
धूप-छाँव दिन-रात ,एक-से काटें हँस कर
प्रभु पर विश्वास ,राखिए धीरज "रविकर" ||
कृपया अंतिम पंक्ति सुधार कर पढ़ें.......
ReplyDeleteप्रभु पर कर विश्वास, राखिए धीरज रविकर