दीमक मजदूरी करे, चाट चाट अविराम |
रानी महलों में फिरे, करे क़ुबूल सलाम |
रानी महलों में फिरे, करे क़ुबूल सलाम |
करे क़ुबूल सलाम, कोयला काला खलता |
बचती फिर भी राख, लाल होकर जो जलता |
लेकिन रानी तेज, और वह पूरा अहमक |
करवा लेती काम, फाइलें चाटे दीमक ||
हा हा सुंदर !
ReplyDeleteबहुत सटीक और सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
आप ने लिखा... हमने पढ़ा... और भी पढ़ें... इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 23-08-2013 की http://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस हलचल में शामिल रचनाओं पर भी अपनी टिप्पणी दें...
ReplyDeleteऔर आप के अनुमोल सुझावों का स्वागत है...
कुलदीप ठाकुर [मन का मंथन]
कविता मंच... हम सब का मंच...
सटीक लेखन , शुभकामनाये रविकर भाई
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/08/blog-post_6131.html
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज वृहस्पतिवार (22-06-2013) के "संक्षिप्त चर्चा - श्राप काव्य चोरों को" (चर्चा मंचः अंक-1345)
पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दीमक और आग कितनी जरूरी है, ये अब ही पता चला.
ReplyDeleteलेकिन रानी तेज, और वह पूरा अहमक |
ReplyDeleteकरवा लेती काम, फाइलें चाटे दीमक ||
प्रजा तंत्र अब चाटे दीमक
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteहा हा बहुत सटीक............
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति. कमाल
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDelete