दर्पण बोले झूठ कब, कब ना खोले भेद |
साया छोड़े साथ कब, यादें जरा कुरेद |
साया छोड़े साथ कब, यादें जरा कुरेद |
यादें जरा कुरेद, मित्र पाया क्या सच्चा |
इन दोनों सा ढूँढ़, कभी ना खाए गच्चा |
इन दोनों सा ढूँढ़, कभी ना खाए गच्चा |
रखिये इन्हें सहेज, कीजिये पूर्ण समर्पण |
हरदम साया साथ, सदा सच बोले दर्पण ||
बेहतरीन..
ReplyDeleteबिल्कुल सही और सटीक, हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
यादें जरा कुरेद, दोस्त पाया क्या सच्चा |
ReplyDeleteइन दोनों सा ढूँढ़, कभी ना खाए गच्चा |
बहुत खूब , रविकर जी !
आने वाले है नये दर्पण
ReplyDeleteऔर जरूरी भी हैं आने
लोग सच देखने के लिये
दर्पण लगे हैं लगाने !
बेहतरीन !!
ReplyDeleteवाह आनंद भयो कुण्डलियाँ पढ़कर .
ReplyDeleteदर्पण सच ही बोलता है..उम्दा पोस्ट !
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ReplyDeleteआइना हमेशा सच बोलती है अच्छी रचना
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