Tuesday, 20 August 2013

हरदम साया साथ, सदा सच बोले दर्पण -

 
दर्पण बोले झूठ कब, कब ना खोले भेद |
साया छोड़े साथ कब, यादें जरा कुरेद |


यादें जरा कुरेद, मित्र पाया क्या सच्चा |
इन दोनों सा ढूँढ़, कभी ना खाए गच्चा |

रखिये इन्हें सहेज, कीजिये पूर्ण समर्पण |
हरदम साया साथ, सदा सच बोले दर्पण || 

8 comments:

  1. बिल्कुल सही और सटीक, हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. यादें जरा कुरेद, दोस्त पाया क्या सच्चा |
    इन दोनों सा ढूँढ़, कभी ना खाए गच्चा |
    बहुत खूब , रविकर जी !

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  3. आने वाले है नये दर्पण
    और जरूरी भी हैं आने
    लोग सच देखने के लिये
    दर्पण लगे हैं लगाने !

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  4. वाह आनंद भयो कुण्डलियाँ पढ़कर .

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  5. दर्पण सच ही बोलता है..उम्दा पोस्ट !

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  6. आइना हमेशा सच बोलती है अच्छी रचना
    latest post नेताजी फ़िक्र ना करो!
    latest post नेता उवाच !!!

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