दिखा अंगूठा दे खुदा, करता भटकल रोष |
ऊपर उँगली कर तभी, रहा खुदा को कोस |
रहा खुदा को कोस, उसे ही करे इशारा |
मारे कई हजार, कहाँ है स्वर्ग हमारा |
रविकर दिया जवाब, मिला जो जेल अनूठा |
यही तुम्हारा स्वर्ग, चिढ़ा तू दिखा अंगूठा ||
(2)
(2)
अटकल दुश्मन लें लगा, है चुनाव आसन्न |
बुरे दौर से गुजरती, सत्ता बांटे अन्न |
सत्ता बाँटे अन्न, पकड़ते हैं आतंकी |
आये दाउद हाथ, होय फिर सत्ता पक्की |
हो जाए कल्याण, अभी तक टुंडा-भटकल |
पकड़ेंगे कुछ मगर, लगाते रविकर अटकल ||
आपकी इस कुण्डली में फन भी है, फ़न भी और fun भी !
ReplyDeleteभटकल के इशारों पर आप की अटकल सही चोट लगा रही है ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर अटकल भटकल दही चटाके बाबा गये दिल्ली ...............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (02.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति .खुबसूरत रचना ,कभी यहाँ भी पधारें।
ReplyDeleteसादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
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