Saturday, 24 August 2013

खोलूं इनकी पोल, करे रविकर कवि वादा -


 विवादास्पद सुन बयाँ, जन-जन जाए चौंक |
नामुराद वे आदतन, करते पूरा शौक |

करते पूरा शौक, छौंक शेखियाँ बघारें |
बात करें अटपटी, हमेशा डींगे मारें |

रखते सीमित सोच, ओढ़ते छद्म लबादा |
खोलूं इनकी पोल, करे रविकर कवि वादा |



देकर व्यर्थ बयान, उतारो यूँ ना कपडे-

कपड़े के पीछे पड़े, बिना जाँच-पड़ताल |
पड़े मुसीबत किसी पर, कोई करे सवाल |
कोई करे सवाल, हिमायत करने वालों |
व्यर्थ बाल की खाल, विषय पर नहीं निकालो |
मिले सही माहौल, रुकें ये रगड़े-लफड़े ।
देकर व्यर्थ बयान, उतारो यूँ ना कपडे ॥ 


6 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  2. बहुत ही सटीक.

    रामराम.

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (26-08-2013) को सुनो गुज़ारिश बाँकेबिहारी :चर्चामंच 1349में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बहुत अच्छा है निशाना .एक दम से सटीक .कपड़ो के नीचे देखोगे वो ही काया .

    देकर व्यर्थ बयान, उतारो यूँ ना कपडे-

    कपड़े के पीछे पड़े, बिना जाँच-पड़ताल |
    पड़े मुसीबत किसी पर, कोई करे सवाल |
    कोई करे सवाल, हिमायत करने वालों |
    व्यर्थ बाल की खाल, विषय पर नहीं निकालो |
    मिले सही माहौल, रुकें ये रगड़े-लफड़े ।
    देकर व्यर्थ बयान, उतारो यूँ ना कपडे ॥

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