विवादास्पद सुन बयाँ, जन-जन जाए चौंक |
नामुराद वे आदतन, करते पूरा शौक |
करते पूरा शौक, छौंक शेखियाँ बघारें |
बात करें अटपटी, हमेशा डींगे मारें |
रखते सीमित सोच, ओढ़ते छद्म लबादा |
खोलूं इनकी पोल, करे रविकर कवि वादा |
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कपड़े के पीछे पड़े, बिना जाँच-पड़ताल | पड़े मुसीबत किसी पर, कोई करे सवाल | कोई करे सवाल, हिमायत करने वालों | व्यर्थ बाल की खाल, विषय पर नहीं निकालो |
मिले सही माहौल, रुकें ये रगड़े-लफड़े ।
देकर व्यर्थ बयान, उतारो यूँ ना कपडे ॥
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बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही सटीक.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत ही सुंदर !
ReplyDeleteबढ़िया कुण्डलियाँ...!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (26-08-2013) को सुनो गुज़ारिश बाँकेबिहारी :चर्चामंच 1349में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत अच्छा है निशाना .एक दम से सटीक .कपड़ो के नीचे देखोगे वो ही काया .
ReplyDeleteदेकर व्यर्थ बयान, उतारो यूँ ना कपडे-
कपड़े के पीछे पड़े, बिना जाँच-पड़ताल |
पड़े मुसीबत किसी पर, कोई करे सवाल |
कोई करे सवाल, हिमायत करने वालों |
व्यर्थ बाल की खाल, विषय पर नहीं निकालो |
मिले सही माहौल, रुकें ये रगड़े-लफड़े ।
देकर व्यर्थ बयान, उतारो यूँ ना कपडे ॥