(1)
लोकतंत्र की शक्ल में, दिखने लगी चुड़ैल |
लोकतंत्र की शक्ल में, दिखने लगी चुड़ैल |
परियों सा लेकर फिरे, पर मिजाज यह बैल |
पर मिजाज यह बैल, भेद हैं कितने सारे |
वंश भतीजा वाद, प्रान्त भाषा संहारे |
जाति धर्म को वोट, जीत षड्यंत्र मन्त्र की |
अक्षम विषम निहार, परिस्थिति लोकतंत्र की |
(2)
अटकल दुश्मन लें लगा, है चुनाव आसन्न |
बुरे दौर से गुजरती, सत्ता बांटे अन्न |
सत्ता बाँटे अन्न, पकड़ते हैं आतंकी |
आये दाउद हाथ, होय फिर सत्ता पक्की |
हो जाए कल्याण, अभी तक टुंडा-भटकल |
पकड़ेंगे कुछ मगर, लगाते रविकर अटकल ||
सुंदर रचना...
ReplyDeleteआप की ये रचना शनीवार यानी 31/08/2013 के ब्लौग प्रसारण पर लिंक की गयी है...
इस संदर्व में आप के सुझावों का स्वागत है।
इस प्रसारण में लिंक की गयी अन्य रचनाकारों की रचनाओं पर भी अपनी दृष्टि अवश्य डाले...
मन का मंथन [मेरे विचारों का दर्पण]
कविता मंच [पर आप भी योगदान दें]
हमारा अतीत [जो खोया है उसे वापिस लाना है... सहियोग दें...]
बहुत शानदार रचना.
ReplyDeleteरामराम.
bahut khub guru ji ,satik
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति .खुबसूरत रचना ,कभी यहाँ भी पधारें।
ReplyDeleteसादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
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