Friday 29 July 2011

दर्द की तुकबंदी

लीजिये भुगत |
कीजिये जुगत ||
हो गया इश्क
बेहूदी   लत |

याद  आये
तेरी सोहबत  ||
फिर तडपाये
होती  दुर्गत |

टपकी बूंद -
मानसूनी छत ||
जल में मछली 
तडपत-तडपत ||

चढ़कर बोली 
मस्तक मस्तक |
बिना बुलाये 
आई आफत |


मीठा लड्डू
कडुवी नेमत |

धत तेरे की
अपनी किस्मत ||

बुरी बला ये
शोखी-हरकत |
फिर न होवे
जालिम गफलत ||

 

Monday 18 July 2011

स्लीपर-सेल : घनाक्षरी

शक्ल  सूरत  एक  सी, हाथ  पैर  एक  जैसे
नाक  कान  आँख  मुंह, एक  से  दिखात हैं |

भीड़ - भाड़  हाट  चौक,  घर  द्वार  रेस्टोरेंट
आस   पास   सोये  पड़े,  बड़े   इफरात   हैं |

कठपुतली   बन  के ,  विभीषण  से  तनके 
यहाँ  वहाँ  चाहे  जहाँ , थैला   पहुँचात   हैं |

दस - बीस  मारकर,  भीड़  बीच  घुस  जात,
आतंकी  स्लीपर  सेल,  यही  तो   कहात  हैं ||


और अंत में एक दोहा,
उम्मीद का--

चर्चित चेहरे देश के, करते है उम्मीद |
आज मुहर्रम हो गई, कल होवेगी ईद ||


चिदंबरम उवाच !
 इकतिस महिना न हुआ, माँ मुम्बा विस्फोट |
 तीन  फटे  तेइस  मरे,  व्यर्थ  निकाले  खोट ||

 जनता  पूछे--
 जनता  पूछे देश  में, कितने महिने और |
गृह-मंत्री जी बोलिए, मिलिहै हमका ठौर ||


Sunday 17 July 2011

जनता पूछे देश में, कितने महिने और |

 B J P : पान का बीड़ा
रखी रकाबी में  रकम, पनबट्टी के  साथ |
दिग्गी जस जो दोगला, वही  लगावे  हाथ || 
राहुल की राह-गुल -- 
कई देश में रात दिन, होते बम-विस्फोट |
एक बार की चोट से,  देगा क्यूँ  न वोट ||

पृथ्वी  बोले
पृथ्वी  बोले  मै  नहीं, गोरी  का  ही दोष |
मोनी-सोनी घूमते, करे व्यक्त अफ़सोस ||
चिदंबरम उवाच !
 इकतिस महिना न हुआ, माँ मुम्बा विस्फोट |
 तीन  फटे  तेइस  मरे,  व्यर्थ  निकाले  खोट ||

 जनता  पूछे--
 जनता  पूछे देश  में, कितने महिने और |
गृह-मंत्री जी बोलिए, मिलिहै हमका ठौर ||

Saturday 16 July 2011

कह विलास जी राव, वेंगसरकर क्या खाकर,

भड़ास   पर

बड़-पावर  है  शरद  का, कहाँ खिलाड़ी जोर
सबसे बड़ ये विश्व का, कृषक,खिलाड़ी, चोर |

कृषक,खिलाड़ी चोर, बोर्ड  का लेखा-जोखा,
करता  चोखा काम,  कहीं  न  होवे  धोखा  |

कह विलास जी राव, वेंगसरकर क्या खाकर,
करे मुकाबला मोर, विकेट अपना उडवाकर |

Friday 15 July 2011

सरकार

तरह   तरह   के  किरदारों  से 
सजे- हमारे   ये  बेहूदे |
कुछ भी नहीं है बस में इनके, 
व्यर्थ भूमि पर झूरै कूदे ||

बड़ा भलामानस बनता है, 
सच्चाई   का  झूठा   पुतला,
चरण   वंदना   सोनी   मैया, 
करे   हमेशा  आँखे   मूंदे ||

कल बापू ने कहा था--

जन-साधारण की करो, सेवा  ये सन्देश ,
नर ही तो नारायना,  धर कर आते वेश |

धर कर आते वेश, सफाई घर की रखना,
रोग रहेंगे दूर,    मजे  जीवन  के चखना |

मंदिर को भी साफ,  रखो  ऐ  मेरे  भाई
प्रभु को लागै नीक,  हमेशा खूब  सफाई ||

Thursday 14 July 2011

हर हर बम-बम / बम बम धम-धम

हर-हर  बम-बम,  बम-बम धम-धम |
तड-पत  हम-हम,  हर पल नम-नम ||

अक्सर  गम-गम, थम-थम, अब थम |
शठ-शम शठ-शम, व्यर्थम  -  व्यर्थम ||

दम-ख़म, बम-बम, चट-पट  हट  तम |
तन  तन  हर-दम
*समदन सम-सम ||    *युद्ध


*करवर   पर  हम,  समरथ   सक्षम |
अनरथ  कर कम, झट-पट  भर दम ||    *विपत्ति 

भकभक जल यम, मरदन  मरहम | 
हर-हर  बम-बम, हर-हर  बम-बम || 
 

Tuesday 12 July 2011

महाराष्ट्र की खबर

सत्वशिला  यानि 
पृथ्वीराज चाह्वान  की  धर्म-पत्नी 
का  पर्स  छिनाया ||

राज  मुस्कराया  --
यह  तो  पहली  बार  है  पृथ्वी --

सोलह  बार  और---
होती  रहे  छिनतई--

पर सत्रह का इन्जार
मत करना मेरे यार
आँखे -- बचा
शोर--मचा

Saturday 9 July 2011

जन-जेब्रा की दु-लत्ती में बड़ा जोर है |

सत्ता-सर  के  घडियालों  यह  गाँठ बाँध लो,
जन-जेब्रा   की   दु-लत्ती   में   बड़ा  जोर है |

बदन  पे  उसके  हैं  तेरे  जुल्मों  की  पट्टी -
घास-फूस  पर  जीता  वो,  तू  मांसखोर है ||

तानाशाही    से    तेरे     है     तंग  " तीसरा"
जीव-जंतु-जग-जंगल-जल पर चले जोर है |

सोच-समझ कर फैलाना अब  अपना जबड़ा
तेरे  दर   पर    हुई   भयंकर  बड़-बटोर  है |

पद-प्रहार से    सुधरेगा   या   सिधरेगा   तू
प्राणान्तक  जुल्मों  से  व्याकुल  पोर-पोर है |

Tuesday 5 July 2011

ढूंढ़ दुलहिनी--

बूढ़  कुँवारा  गली-गली  की खाख छानता |
भूमि-अधिग्रहण  के 'भट्टे' से राख छानता ||

                        मिलने का विश्वास उसे  है,  इकदम पक्का |
                        बार - बार  'परसौली'  पूरे   पाख    छानता || 

पर  माया  की  माया  से  अनभिग्य  नहीं  वो |
प्रकृति-अंक से प्रति-दिन दर्शन सांख्य छानता 

                        बाबा - नाना   के   चरणों   की   बड़ी   महत्ता |
                        गठरी में रख ले 'रविकर' जो  शाख  छानता ||

किन्तु सियासत कही पड़े न  भारी  कुल पर |
ढूंढ़ दुलहिनी भटक रहा क्या *माख छानता ||     * अभिमान / अपने दोष को ढापना 
           
                        

Saturday 2 July 2011

भली टिप्पणी

आँखे  हैं  दोषी  बड़ी,  लेती  वो  सब  देख |
देखें  सारे  छिद्र  पर,  पढ़ती  कम  आलेख ||
पढ़ती  कम आलेख,  सरसरी  डाल  निगाहें |
करती  भली  टिप्पणी, अक्सर झूठ सराहें ||
आये गलती ध्यान, मैल मन में न राखें |
आलोचक बन लिखें, ध्यान देकर के आँखें ||

नासमझ सास

नाज  न  पकावै  वा  तौ  नाज  दिखावै है   
लाज  न  आवै  बहू   बाज  न  आवै   है |

झपिया झाँझन झुल्नी   झुलका पहिन के
झाँव-झाँव, झकझोर, झमकत  धावै  है  |
 

छनकाय-मनकाय    कहीं भी  छुछुआय 
खट्टा खखोर करिके, खटिया  पसरावै है |

मिथ्या मिमियाय के , झलना झुलाय कर
पति-आवै जान पावै , पातुर पति-आवै है ||