सत्वशिला यानि
पृथ्वीराज चाह्वान की धर्म-पत्नी
का पर्स छिनाया ||
राज मुस्कराया --
यह तो पहली बार है पृथ्वी --
सोलह बार और---
होती रहे छिनतई--
पर सत्रह का इन्जार
मत करना मेरे यार
आँखे -- बचा
शोर--मचा
पृथ्वीराज चाह्वान की धर्म-पत्नी
का पर्स छिनाया ||
राज मुस्कराया --
यह तो पहली बार है पृथ्वी --
सोलह बार और---
होती रहे छिनतई--
पर सत्रह का इन्जार
मत करना मेरे यार
आँखे -- बचा
शोर--मचा
बहुत अच्छी कविता। बधाई।।
ReplyDeleteवाह, बहुत अच्छी।
ReplyDeleteवाह, बहुत अच्छे,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
beautiful
ReplyDeletekya kahana
बहुत खूब रविकर भाई .ऐसे प्रसंगों पर तनिक पाद टिपण्णी लिख दिया करें .
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है ।
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