बूढ़ कुँवारा गली-गली की खाख छानता |
भूमि-अधिग्रहण के 'भट्टे' से राख छानता ||
मिलने का विश्वास उसे है, इकदम पक्का |
बार - बार 'परसौली' पूरे पाख छानता ||
पर माया की माया से अनभिग्य नहीं वो |
प्रकृति-अंक से प्रति-दिन दर्शन सांख्य छानता
बाबा - नाना के चरणों की बड़ी महत्ता |
गठरी में रख ले 'रविकर' जो शाख छानता ||
किन्तु सियासत कही पड़े न भारी कुल पर |
ढूंढ़ दुलहिनी भटक रहा क्या *माख छानता || * अभिमान / अपने दोष को ढापना
बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत खूब कहा है ।
ReplyDeleteravikar ji ,dinkar ji ,dinesh ji ,bahut achchhaa vyangy vinod .aaj transliteration thapp hai .
ReplyDeleteBahut Sunder...
ReplyDeletegupta ji bahut hi gahari baat . shaayad dulhiniyaa mil jaave !
ReplyDeletebahut gahara vyang..
ReplyDeleteकमाल का लिखते हैं आप। अफ़सोस है कि परिचय देर से हुआ।
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