शक्ल सूरत एक सी, हाथ पैर एक जैसे
नाक कान आँख मुंह, एक से दिखात हैं |
भीड़ - भाड़ हाट चौक, घर द्वार रेस्टोरेंट
आस पास सोये पड़े, बड़े इफरात हैं |
कठपुतली बन के , विभीषण से तनके
यहाँ वहाँ चाहे जहाँ , थैला पहुँचात हैं |
दस - बीस मारकर, भीड़ बीच घुस जात,
आतंकी स्लीपर सेल, यही तो कहात हैं ||
और अंत में एक दोहा,
उम्मीद का--
चर्चित चेहरे देश के, करते है उम्मीद |
आज मुहर्रम हो गई, कल होवेगी ईद ||
चिदंबरम उवाच !
इकतिस महिना न हुआ, माँ मुम्बा विस्फोट |
तीन फटे तेइस मरे, व्यर्थ निकाले खोट ||
जनता पूछे--
उम्मीद का--
चर्चित चेहरे देश के, करते है उम्मीद |
आज मुहर्रम हो गई, कल होवेगी ईद ||
चिदंबरम उवाच !
इकतिस महिना न हुआ, माँ मुम्बा विस्फोट |
तीन फटे तेइस मरे, व्यर्थ निकाले खोट ||
जनता पूछे--
जनता पूछे देश में, कितने महिने और |
गृह-मंत्री जी बोलिए, मिलिहै हमका ठौर ||
गृह-मंत्री जी बोलिए, मिलिहै हमका ठौर ||
आतंक! डरिए रविकर जी। डरिए। अब ब्लागों पर भी आ चुके हैं ये।
ReplyDeleteसटीक कहा है ...
ReplyDeleteकहा बहुत सही,
ReplyDeleteहोता है यही।
बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत सटीक और सामयिक.
ReplyDeletebeautifully said
ReplyDeleteexcellent
रविकर जी बहुत अच्छी प्रस्तुति .
ReplyDeleteगुप्ता जी व्यस्तता के वजह से कुछ दुरी थी ! आज समय कुछ मिला तो देखा और सभी पोस्ट को पढ़ा ! चर्चा मंच पर न जा सका क्यों की शुक्रवार को सिकंदारावाद चला गया था ! आज लौटा हूँ ! आप की रचनाये अजब और गजब सी होती है ! सभी से अलग और समसामयिक ! बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteekdam samyik rachna......behad sahi chitran.
ReplyDeleteये भी पा गए.....
ReplyDeleteऔर आप छा गये गुरु.
बेहतरीन दोहे। शुभकामनायें।
ReplyDeleteAdbhut...dohe...waah
ReplyDeleteneeraj
रविकर जी आपका लिखा नित नूतन और सुन्दर लगता है .इस मर्तबा पहले से भी ज्यादा सटीक मिसायल हैं ये दोहे -बूमरांग से वार करतें हैं अपने लक्ष्य पर .
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