लीजिये भुगत |
कीजिये जुगत ||
हो गया इश्क
बेहूदी लत |
याद आये
तेरी सोहबत ||
फिर तडपाये
होती दुर्गत |
टपकी बूंद -
मानसूनी छत ||
जल में मछली
तडपत-तडपत ||
जल में मछली
तडपत-तडपत ||
चढ़कर बोली
मस्तक मस्तक |
बिना बुलाये
आई आफत |
मीठा लड्डू
कडुवी नेमत |
धत तेरे की
अपनी किस्मत ||
बुरी बला ये
शोखी-हरकत |
फिर न होवे जालिम गफलत ||
बाजिब जनाब |
ReplyDeleteदर्द कि भी तुकबंदी ..बढ़िया है
ReplyDeleteदमदार है, पढ़ने में अच्छी लगीं।
ReplyDeleteच्छी सीख , सर उठाने लायक भी न रहें !बधाई
ReplyDeleteखूब ...बहुत बढ़िया
ReplyDeleteमोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का ,
ReplyDeleteउसी को देख के जीतें हैं जिस काफिर पे डीएम निकले .
वाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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पूरे 36 घंटे बाद नेट पर आया हूँ!
धीरे-धीरे सबके यहाँ पहुँचने की कोशिश कर रहा हूँ!
बुरी बला ये
ReplyDeleteशोखी-हरकत |
फिर न होवे
जालिम गफलत ||
वाह, गागर में सागर।
वाह !!अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteवाह वाह, अपने दर्द को यूं हंसी में टालना हर किसी के बस की बात नही ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ....दर्द का हद से गुजरना है हंसी हो जाना...सादर !!!
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ReplyDeleteदिनांक 06/01/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
“दर्द की तुकबंदी...हलचल का रविवार विशेषांक....रचनाकार...रविकर जी”
वाह,क्या खूब..आप ने दर्द की ईंटो से भी साठ - गाठ कर"बेहतरीन तुकबंदी" कर दिया ,"याद आये
ReplyDeleteतेरी सोहबत ||
फिर तडपाये
होती दुर्गत |......."