भारत का भुरता बना, खाया खूब अघाय |
भरुवा अब तलने लगे, सत्तारी सौताय |
सत्तारी सौताय, दलाली दूजा खाये |
आम आदमी बोल, बोल करके उकसाए |
इज्जत रहा उतार, कभी जन-गण धिक्कारत |
भागे जिम्मेदार, अराजक दीखे भारत ||
अंतर-तह तहरीर है, चौक-चाक में आग-
अंतर-तह तहरीर है, चौक-चाक में आग |
रविकर सर पर पैर रख, भाग सके तो भाग |
भाग सके तो भाग, जमुन-जल नाग-कालिया |
लिया दिया ना बाल, बटोरे किन्तु तालियां |
दिखे अराजक घोर, काहिरा जैसा जंतर |
होवे ढोर बटोर, आप में कैसा अंतर ||
कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है
ReplyDeletebahut khoob likha hai aapne
ReplyDeleteshubhkamnayen
beautifully penned
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteनई पोस्ट मेरी प्रियतमा आ !
नई पोस्ट मौसम (शीत काल )
भागे जिम्मेदार ,अराजक दीखे भारत।
ReplyDeleteसही कहा सर।
बहुत बढ़िया. शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteभारत का भुरता बना, खाया खूब अघाय |
ReplyDeleteभरुवा अब तलने लगे, सत्तारी सौताय |
क्या बात है रविकर भाई बहुत सुन्दर है .
अंतर-तह तहरीर है, चौक-चाक में आग |
ReplyDeleteरविकर सर पर पैर रख, भाग सके तो भाग |
भाग सके तो भाग, जमुन-जल नाग-कालिया |
लिया दिया ना बाल, बटोरे किन्तु तालियां |
दिखे अराजक घोर, काहिरा जैसा जंतर |
होवे ढोर बटोर, आप में कैसा अंतर ||
सुन्दर मनोहर व्यंजना।