Sunday, 19 January 2014

दारु दाराधीन पी, हुआ नदारद मर्द-


"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-34

दोहा

दारु दाराधीन पी, हुआ नदारद मर्द  |
दारा दारमदार ले, मर्दे गिट्टी गर्द ||

कंकरेत कंकर रहित, काष्ठ विहीन कुदाल |
बिन भार्या के भवन सम, मन में सदा मलाल ||

अड़ा खड़ा मुखड़ा जड़ा, उखड़ा धड़ा मलीन |
लीन कर्म में उद्यमी, कभी दिखे ना दीन ||

*कृतिकर-शेखी शैल सी, सज्जन-पथ अवरुद्ध |
करे कोटिश: गिट्टियां, हो *षोडशभुज क्रुद्ध ||

दाराधीन=स्त्री के वशीभूत
कृतिकर=बीस भुजा वाला


षोडशभुज=सोलह भुजाओं वाली

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