"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-34
दोहा
दारु दाराधीन पी, हुआ नदारद मर्द |
दारा दारमदार ले, मर्दे गिट्टी गर्द ||
कंकरेत कंकर रहित, काष्ठ विहीन कुदाल |
बिन भार्या के भवन सम, मन में सदा मलाल ||
अड़ा खड़ा मुखड़ा जड़ा, उखड़ा धड़ा मलीन |
लीन कर्म में उद्यमी, कभी दिखे ना दीन ||
*कृतिकर-शेखी शैल सी, सज्जन-पथ अवरुद्ध |
करे कोटिश: गिट्टियां, हो *षोडशभुज क्रुद्ध ||
दाराधीन=स्त्री के वशीभूत
कृतिकर=बीस भुजा वाला
षोडशभुज=सोलह भुजाओं वाली
बहुत उम्दा ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteउफ़..कैसी विडम्बना
ReplyDelete