लासा मंजर में लगा, आह आम अरमान |
मौसम दे देता दगा, है बसन्त हैरान |
है बसन्त हैरान, कोयलें रोज लुटी हैं |
गिरगिटान मुस्कान, लोमड़ी बड़ी घुटी है |
गीदड़ की बारात, दिखाता सिंह तमाशा |
बन्दर की औकात, बताता नया खुलासा ||
आये सज्जन वृन्द, किन्तु लुट जाती मुनिया-
भन्नाता बिन्नी दिखा, सुस्ताता अरविन्द |
उकसाता योगेन्द जब, उकताता यह हिन्द |
उकताता यह हिन्द, मुफ्तखोरों की दुनिया |
आये सज्जन वृन्द, किन्तु लुट जाती मुनिया |
दीन-हीन सरकार, विपक्षी है चौकन्ना |
टपकाए नित लार, जाय रविकर जी भन्ना ||
वाह बहुत सुंदर !
ReplyDeleteदीन-हीन सरकार, विपक्षी है चौकन्ना
ReplyDeleteटपकाए नित लार, जाय रविकर जी भन्ना
बहुत बढ़िया
बहुत बढ़िया.....
ReplyDeleteवर्तमान परिदृश्य पर, नज़र दौड़ते आप.
ReplyDeleteबन जाती इनकी कुण्डली चाहे बेटा हो या बाप...
सुंदर कटाक्ष होता है आपकी रचनाओं में .....सादर !!!