(1)
बेइमानी समझे नहीं, दिल की चतुर दिमाग ।
बेइमानी समझे नहीं, दिल की चतुर दिमाग ।
सब कुछ बाई-पास हो, कोलफील्ड की आग ।
कोलफील्ड की आग, कोयला-कलुष जलाये ।
मिटते दूषित दाग, एक नर-कुल उपजाए ।
बने लेखनी श्रेष्ठ, रचे रचना मनभावन ।
तापे आग दिमाग, बरसता दिल में सावन ।।
(2)
बल्ले बल्ले कर रहे, नालायक उद्दंड ।
रमण-राज में भय ख़तम, पड़ी कलेजे ठण्ड ।
पड़ी कलेजे ठण्ड, नया कानून चलेगा ।
करे पुत्र जो जुल्म, दंड अब बाप भरेगा ।
नहीं पड़ी यह बात, किन्तु रविकर के पल्ले ।
सहे वो डिग्री थर्ड, पुत्र की बल्ले बल्ले ।।
सुन्दर षटपदी!
ReplyDeleteदिल में सावन बरसता रहे, ऐसे ही..
ReplyDeleteविधना ने ऐसी रची,दिल से फूटा स्रोत |
ReplyDeleteब्लॉग-जगत भौंचक हुआ,नहीं है रवि खद्योत ||
नारी बन-करके रचे, रचना रविकर आज |
Deleteदृष्टिकोण यह देखिये, नर-कुल का अंदाज ||
मनभावन रचना .
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