Sunday, 15 July 2012

बने लेखनी श्रेष्ठ, रचे रचना मनभावन -

(1)
बेइमानी समझे नहीं,  दिल की चतुर दिमाग ।
सब कुछ बाई-पास हो, कोलफील्ड की आग ।

कोलफील्ड की आग, कोयला-कलुष जलाये ।
मिटते दूषित दाग, एक नर-कुल उपजाए ।

बने लेखनी श्रेष्ठ, रचे रचना मनभावन ।
तापे आग दिमाग, बरसता दिल में सावन ।।

(2)
 
बल्ले बल्ले कर रहे, नालायक उद्दंड ।
रमण-राज में भय ख़तम, पड़ी कलेजे ठण्ड ।
पड़ी कलेजे ठण्ड, नया कानून चलेगा ।
करे पुत्र जो जुल्म, दंड अब बाप भरेगा  ।
नहीं पड़ी यह बात, किन्तु रविकर के पल्ले ।
सहे वो डिग्री थर्ड, पुत्र की बल्ले बल्ले ।।

5 comments:

  1. दिल में सावन बरसता रहे, ऐसे ही..

    ReplyDelete
  2. विधना ने ऐसी रची,दिल से फूटा स्रोत |
    ब्लॉग-जगत भौंचक हुआ,नहीं है रवि खद्योत ||

    ReplyDelete
    Replies
    1. नारी बन-करके रचे, रचना रविकर आज |
      दृष्टिकोण यह देखिये, नर-कुल का अंदाज ||

      Delete
  3. मनभावन रचना .

    ReplyDelete