Tuesday, 10 July 2012

अभिव्यक्ति का गला घोटती मारी रचना

अभिव्यक्ति का  गला घोटती  मारी  रचना ।
जाति धर्म पर, यौन कर्म पर हारी  रचना ।

देवदासियां रही हकीकत, दुनिया जाने -
कब से भारी जुल्म सह रही नारी रचना ।

यौन-कर्म सी समलैंगिकता यहाँ हकीकत-
खुद ईश्वर पर भारी  है  अय्यारी  रचना ।

हिन्दू मुश्लिम सिक्ख इसाई जैन पारसी 
बौद्धों पर भी आज पड़  रही भारी रचना ।

शास्त्र तर्क से जीत न पाए खम्भा नोचे-
 हथियारों की धमकी देती हारी रचना ।

आंसू नहीं पोंछने वाले इस दुनियां में-
बड़ी बड़ी  तब देने लगती गारी रचना ।

श्रैन्गारिकता सुन्दरता पर छंद लिखो न 
हास्य व्यंग उपहास कला पर सारी  रचना ।।

रक्षाबंधन आने वाला  है  सावन  में-
 कृष्ण कन्हैया की भी आये बारी रचना ।।

2 comments:

  1. एक सच्ची कहानी सुनाती... आपकी रचना!
    शुभकामनाएँ!

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  2. चना यहाँ भी है
    झाड़ कहाँ है?
    रचना गजब ढा रही है
    कभी गोली तो कभी
    तलवार नजर आ रही है ।

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