Saturday, 21 July 2012

दारु पीना जुल्म, लड़कियों का क्या रांची ??

"बेहद नशे की हालत में लड़की"
रांची गौहाटी नहीं, मत करना यह क्लेम ।
पी के निकले रात में, लगता ही तब ब्लेम ।

लगता ही तब ब्लेम, खबर तो दिन की भाई ।
थाने में दें भेज,  करे यह भीड़ भलाई  ।

रविकर जी हलकान, मगर पूछे वो चाची ।
दारु पीना जुल्म, लड़कियों का क्या रांची ??  
 अपनी सुरक्षा अपने हाथ।
धनबाद स्टेशन पर अगर रात 2 बजे उतरता हूँ तो 3 घंटे वहीँ इन्तजार कर लेता हूँ-
आप भी समझें इस बात को ।।

9 comments:

  1. रविकर जी हलकान, मगर पूछे वो चाची ।
    दारु पीना जुल्म, लड़कियों का क्या रांची ??
    हिन्दुस्तान में तो लडकियों का लड़की होना ही जुल्म है .कोख की हर बाधा को धता बता आती है वह बाहर .यहाँ मिलती है उसको शीला चाची अजी दारु क्या वह तो उसे रात को बाहर न आने की भी नसीहत देती है अहर्निश ऐसी है वो शीला चाची .

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  2. पूछे कवि रविकर हमसे राय
    क्या पीना जुल्म है? कोई बताए ....

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  3. Ladkiyo ka sab jurm aur ladko ka sab ladakpan... Samaj ka doglapan hai

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  4. मुखर व प्रखर अभिव्यक्ति .

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  5. बाण ये कैसा छोड़ा है
    हमारे आदरणीय 'रविकर'
    जवाब नहीं है आपका
    हे, वीर धनुर्धर !
    :)
    सादर !

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  6. प्रश्न वाजिब है...

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  7. @ आशु कवि रविकर जी, पहले तो मैंने सोचा कवित्त में ही कहूँ ... लेकिन फिर सोचा कभी-कभी स्पष्ट भी कहना सीखूँ ...
    सो साफ़-साफ़ कह रहा हूँ... कवि समाज को दर्पण दिखाता है कि 'वह अब ऐसा है'. लेकिन कवि का धर्म ये भी तो है कि 'वह उसे उसका गंदा ही चित्र बार-बार न दिखाये. उसे वह महसूस करे जरूर, लेकिन उसकी गंदगी कैसे साफ़ हो... यह सोचे भी.'

    'रवि' की नज़र जिस इन्द्री पर नहीं पहुँचती वहाँ उसका 'कर' आसानी से पहुँच जाता है और गंदा होने पर उसे साफ़ भी कर देता है.

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  8. अतिशयता पर प्रतिक्रिया :

    १] अच्छा 'कवि' होने का अर्थ ये नहीं है कि उसके लिये कोई क्षेत्र प्रतिबंधित नहीं है.

    २] आशु 'कवि' होने का अर्थ कतई ये नहीं कि हम अपनी अनायास आने वाली डकारों और अपान वायु निस्सरण तक को छंदबद्ध करने की सोचें.

    ३] प्रेमी 'कवि' होने का अर्थ ये भी नहीं कि हम विषाणुओं (रोगजन्य जीवाणु) से प्रेम दर्शायें.

    ४] महा 'कवि' होने के लिये शौच समय, संध्या समय, रसोई समय, शयन समय, भ्रमण समय को एक रस में जीना भी आवश्यक नहीं होता. यह प्रक्रिया तो स्वयं शुरू होती है और 'कवि' को उसके यथायोग्य स्थान पर पहुँचा देती है.

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  9. निवेदन :

    आप कम-से-कम सामाजिक खबरों पर अपनी प्रतिक्रिया 'कविता करने के बाद' ... बातचीत शैली द्वारा साफ़ भी कर दिया करें. आपके कहे का महत्व होता है. या कहूँ कि, आपके कहे को सभी ब्लोगर्स में महत्व दिया जाता है. व्यक्तिगत रचनाओं में उलाहना, व्यंग्य एक सीमा तक सही लगता है. उसके बाद वह अपच करता है, पचता नहीं... लगातार घात-प्रतिघात किसी के उकसाने पर तो होने ही नहीं चाहिए. हम जब लगातार किसी से बात करते हैं... तब बहुत सारी बातों में एक-आद बात हल्की भी कर जाते हैं... इससे यह अर्थ कतई नहीं लगाना चाहिए कि समाने वाले का स्तर कमतर है?

    मुझे एक भय है कि आप कहीं उस खेमे में शामिल न कर लिये जाएँ... जो गुट बनाकर शिकार करता है.

    कहीं आप शामिल तो नहीं हो गये हैं? .... यदि हाँ तो अपने रथ के भटके हुए घोड़ों को सही दिशा दें...



    विष्ठा पुष्ट बनाए के, करते मुत्रम साथ.

    नहीं पहुँचते चख जहाँ, पहुँचे धोवन हाथ.

    पहुँचे धोवन हाथ, गुदा को साफ़ बनाते.

    मुर्ग मुसल्लम देख, भूल सब खाना खाते.

    रविकरजी मल कान, नहीं सुनते स्वर निष्ठा.

    पर्ररम पर्ररम गूँज काव्य की करते विष्ठा.

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