एक ठो रचना लटी पर ।
कह गये रविकर फटी-चर ।
दो कमी'जो की कमी'ने -
दी पटक रविकर जमीं पर ।
काव्य कैसा कल रचा था -
खुश हुई कलियाँ, हटी पर ।
कल ग़लतफ़हमी घटी थी
आज भौंरे हैं घटी पर ।
खून रविकर पी चुके खुद
कह रहे मच्छर, तमीचर ।
नटराज भी आकर सिखाये
नहीं माने वह नटी पर
दिख रही साबूत लेकिन
कई टुकड़ों में बटी पर
मुंह की अपने खा चुकी वो -
फिर से आके है डटी पर |
उसकी टॉनिक बस है टन्टा,
ReplyDeleteआप भी मरते उसी पर |
निस्प्रही बन जाइए फिर
लीजिए उसकी खुशी हर ||
dinesh gupta
Delete10:54 AM (51 minutes ago)
to संतोष
रचना रचना रवि-करे, रचना रची न जाय |
रचना रविकर थी पड़ी, चला यहाँ चिपकाय ||
संतोष त्रिवेदी chanchalbaiswari@gmail.com
11:08 AM (37 minutes ago)
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वाह-वाह !
14 जुलाई 2012 2:24 pm को, dinesh gupta ने लिखा:
dinesh gupta
11:09 AM (36 minutes ago)
to संतोष
आभार
संतोष त्रिवेदी chanchalbaiswari@gmail.com
11:17 AM (29 minutes ago)
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रविकर फैजाबादी13 जुलाई 2012 8:45 pm
दिल्ली का दिल भी तरावट महसूस करने लगा-
बढ़िया भाव ||
पूरब में अब बाढ़ ने , ढाया कहर अजीब |
वर्षा रानी से हुआ, ज्यादा त्रस्त गरीब |
पश्चिम में सावन घटा , ठीक ठाक संतोष |
कवि हृदयों में है बढ़ा, ज्यादा जोश-खरोश ||
संतोष त्रिवेदी14 जुलाई 2012 2:46 pm
रविकर ने छोड़ दिया,है अचूक हथियार |
घायल रचना हो गई,बारिश बंटाधार ||
14 जुलाई 2012 2:39 pm को, dinesh gupta ने लिखा:
dinesh gupta
11:23 AM (23 minutes ago)
to संतोष
वाह-
बारिश हो या जाय थम, कमे न कवि उत्साह |
टिप-टिप बूंदों में लखे, रचना-रचना राह ||
संतोष त्रिवेदी chanchalbaiswari@gmail.com
11:29 AM (16 minutes ago)
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थमे न कवि उत्साह....
रचना-रचना रट रहे,कविवर रविकर,
अपने दिल की ही कहे,तमचर दिनकर ||
14 जुलाई 2012 2:53 pm को, dinesh gupta ने लिखा:
dinesh gupta
11:35 AM (10 minutes ago)
to संतोष
मेरे यहाँ अथाह जल, जल ना दिल्ली वीर |
दिल ही की तो है कही, तेरी मेरी पीर ||
असुर न हों तो अमृत नहीं निकलता. हरेक का अपना उपयोग है. दिव्य पुरूष ज़हर से भी औषधि बना लेते हैं।
ReplyDeleteआपकी कविता एक ऐसी ही एन्टीडोट है.
शुक्रिया.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (14-07-2012) के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
चर्चा मंच सजा दिया, देख लीजिए आप।
टिप्पणियों से किसी को, देना मत सन्ताप।।
मित्रभाव से सभी को, देना सही सुझाव।
शिष्ट आचरण से सदा, अंकित करना भाव।।
मुंह की अपने खा चुकी वो -
ReplyDeleteफिर से आके है डटी पर |
अभिनव शैली अभिनव प्रयोग धर्मा जमीन लेखन की .बधाई .
मुंह की अपने खा चुकी वो -
ReplyDeleteफिर से आके है डटी पर |
क्या बात है रविकर भाई -जो बात सैकड़ों शब्दों की पोस्ट नहीं कर सकती
आपकी ये दो लाईना कर डालती हैं !
खूब कहा...वाह !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया... वाह वाह
ReplyDeleteसादर
फिर पढ़ी रचना फटी -चर ,चर्चा मंच आज शनिचर .बढ़िया प्रस्तुति .
ReplyDeleteफटीचर ही तो कहा गलत कहाँ कहा ?
ReplyDeleteरवि भाई जी... अद्भुत
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