हलकट निश्चर पोच, सोच के कहता रविकर |
तन-मन मार खरोंच, नोच कर हालत बदतर |
कर जी का जंजाल, सुधारे कौन बाज को |
बेहतर रखो सँभाल, स्वयं से प्रिये लाज को ||
तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग-
तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग |
मन का कोमल भाव है, जैसे जाये जाग |
जैसे जाये जाग, वस्तु वस्तुत: नदारद |
पर बाकी सहभाग, पार कर जाए सरहद |
जड़ चेतन अवलोक, कहीं आलौकिक पावें |
लुटा रहे अविराम, लूट जैसे मन भावे |
मन का कोमल भाव है, जैसे जाये जाग |
जैसे जाये जाग, वस्तु वस्तुत: नदारद |
पर बाकी सहभाग, पार कर जाए सरहद |
जड़ चेतन अवलोक, कहीं आलौकिक पावें |
लुटा रहे अविराम, लूट जैसे मन भावे |
रचना के साथ चित्र भी बढ़िया.....
ReplyDeleteसादर
अनु
:)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (12-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteचोंच से नोंच कर दी एक खरोंच !
गजब !!
जन्माष्टमी के मौके पर सबको शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआपका हार्दिक स्वागत है.
सुन्दर और उपयोगी लिंक्स का चयन वाक़ई काबिले तारीफ़ है.
चोंच नुकीली तीक्ष्ण हैं ,पंजे के नाखून
ReplyDeleteजो भी आये सामने , कर दे खूनाखून
कर दे खूनाखून , बाज है बड़ा शिकारी
गौरैया खरगोश ,कभी बुलबुल की बारी
सबकी चोंच है मौन,व्यवस्था ढीली-ढीली
चोंच लड़ाये कौन,बाज की चोंच की नुकीली ||
बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत अच्छे चित्र और रचना भी बहुत सुन्दर
ReplyDeleteतरह तरह के प्रेम हैं सबका अपना भाव ,
ReplyDeleteचेत सके तो चेत ले ,न चेते निर्भाव
बहुत बढ़िया प्रस्तुति सभी टिप्पणियाँ .
क्या ये चित्र आपने खींचे हैं?
ReplyDeleteअलग-अलग सबके यहाँ, प्रेम-प्रीत के ढंग।
ReplyDeleteफैले हैं संसार में, सभी तरह के रंग।।
nice.. प्रोन्नति में आरक्षण :सरकार झुकना छोड़े.
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