Friday 10 August 2012

बेहतर रखो सँभाल, स्वयं से प्रिये लाज को-

 File:Bulbul 2.JPGFile:Brown-eared Bulbul 1.jpg

चुलबुल बुलबुल ढुलमुला, घुलमिल चीं चीं चोंच |
बाज बाज आवे नहीं, हलकट निश्चर पोच |

हलकट निश्चर पोच, सोच के कहता रविकर |
तन-मन मार खरोंच, नोच कर हालत बदतर |

कर जी का जंजाल, सुधारे कौन बाज को |
बेहतर रखो सँभाल, स्वयं से प्रिये लाज को ||
File:Accipiter gentilis -injured Goshawk.jpg 
File:Nubianvulture.jpeg

तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग-

तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग |
मन का कोमल भाव है, जैसे जाये जाग |

जैसे जाये जाग, वस्तु वस्तुत: नदारद |
पर बाकी सहभाग, पार कर जाए सरहद |

जड़ चेतन अवलोक, कहीं आलौकिक पावें |
लुटा रहे अविराम, लूट जैसे मन भावे |

12 comments:

  1. रचना के साथ चित्र भी बढ़िया.....

    सादर
    अनु

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (12-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  3. बहुत सुंदर !
    चोंच से नोंच कर दी एक खरोंच !
    गजब !!

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  4. जन्माष्टमी के मौके पर सबको शुभकामनाएं.

    आपका हार्दिक स्वागत है.

    सुन्दर और उपयोगी लिंक्स का चयन वाक़ई काबिले तारीफ़ है.

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  5. चोंच नुकीली तीक्ष्ण हैं ,पंजे के नाखून
    जो भी आये सामने , कर दे खूनाखून
    कर दे खूनाखून , बाज है बड़ा शिकारी
    गौरैया खरगोश ,कभी बुलबुल की बारी
    सबकी चोंच है मौन,व्यवस्था ढीली-ढीली
    चोंच लड़ाये कौन,बाज की चोंच की नुकीली ||

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  6. बहुत सुन्दर..

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  7. बहुत अच्छे चित्र और रचना भी बहुत सुन्दर

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  8. तरह तरह के प्रेम हैं सबका अपना भाव ,
    चेत सके तो चेत ले ,न चेते निर्भाव
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति सभी टिप्पणियाँ .

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  9. क्या ये चित्र आपने खींचे हैं?

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  10. अलग-अलग सबके यहाँ, प्रेम-प्रीत के ढंग।
    फैले हैं संसार में, सभी तरह के रंग।।

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