भरत क्षेत्री गोलकी, गीता गोली व्याह ।
हाकी के महिला पुरुष, पकडे सीधी राह ।
पकडे सीधी राह , बधाई मंगल मंगल ।
गोल पोस्ट पर वाह, दिखाया जलवा-दंगल ।
दोनों हैं अति श्रेष्ठ, बताना लेकिन भाई ।
दोनों रोकें गोल, खेल फिर कौन जिताई ।।
कच्छप छप छप छोड़ के, करे हवा से बात ।
विगत शत्रु खरगोश को, दे दे फिर से मात ।
दे दे फिर से मात, शीश पर कवच लगाए ।
हाथ पैर धड देख, धड़ा धड़ दौड़ा जाये ।
चार गियर का त्वरण, आज रण-विजय करे है ।
ख़तम होय जो दौड़, कवच को बगल धरे है ।।
वाह !
ReplyDeleteक्या कछुवा दौड़ाया है
खरोगोश को फिर से रुलाया है !
कछुवा पछुवाता नहीं ,रखे सदा ही जोश
ReplyDeleteऔर दंभ में हारता , हरदम ही खरगोश
हरदम ही खरगोश, हमेशा यही कहानी
जोश होश के साथ , चाल होती मस्तानी
जीत हार को भूल ,चलाचल आगे बचुवा
सदा रहा पर्याय, जीत का केवल कछुवा ||
कछुवा पछुवाता नहीं ,रखे सदा ही जोश
ReplyDeleteऔर दंभ में हारता , हरदम ही खरगोश
हरदम ही खरगोश, हमेशा यही कहानी
जोश होश के साथ , चाल होती मस्तानी
जीत हार को भूल ,चलाचल आगे बचुवा
सदा रहा पर्याय, जीत का केवल कछुवा ||