Saturday, 4 August 2012

ऐ रविकर नादान, नहीं हम कद्दू चाक़ू-

ये मुक्ति का नया गीत है ...दारू के साथ .आज इनके माता-पिता गर्व से भर उठे होंगे और कहेंगी हमारी बच्चियां भी पुरुषों से पीछे नहीं है. हम भी प्रोग्रेसिव हैं. अरे, क्या लडके ही खुले आम दारू पीयेंगे? लडकिया बेचारी इस शौक से क्यों वंचित रहें? ये भारत नहीं, नए इंडिया की लडकियां है. इस दृश्य का जश्न मानना ही चाहिए...ये लडकियां मुक्ति-दूत हैं इनका सम्मान करो भाई. शर्मसार होने की ज़रुरत नहीं. ऐसा करके हम अपने को पिछड़ा, गंवार साबित करेंगे.
 
कोल्ड-ड्रिक्स सा पी रहे, मत यूँ आँखें फाड़ |
ब्वायज हैविंग आल फ़न, दें हम खेला भाड़ |

दें हम खेला भाड़, करेंगे सब मन चाहा |
झूमें अब दिन-रात, वाह क्या मस्ती आहा |

ऐ रविकर नादान, नहीं हम कद्दू चाक़ू |
जाए चक्कू टूट, सुनो अस्मत के डाकू ||

4 comments:

  1. हद है।
    कहां से तस्वीर उतार लाए हैं।
    जो भी कविता में सही तस्वीर उतारे हैं।

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    1. जी -
      फेसबुक पर पहले तस्वीर मिली-
      कुंडली बाद में-
      आभार

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  2. स्वर्ग बना है, अब क्या कहना,
    किसकी करनी, किसको सहना।

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  3. नारी है तो बेचारी क्यूँ रहे...?
    नारीवादियों के कहर से बचो जालिमों !

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