Tuesday 28 August 2012

व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय

पंजाब एवं  बंग आगे,  कट चुके हैं  अंग आगे|
लड़े  बहुतै  जंग  आगे,  और  होंगे  तंग  आगे|
हर गली तो बंद आगे, बोलिए, है क्या उपाय ??
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

सर्दियाँ ढलती  हुई हैं,  चोटियाँ  गलती हुई हैं |
गर्मियां  बढती हुई हैं,  वादियाँ  जलती हुई हैं |
गोलियां चलती हुई हैं, हर तरफ आतंक छाये --
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

सब दिशाएँ  लड़ रही हैं,   मूर्खताएं  बढ़ रही हैं 
|

नियत नीति को बिगाड़े, भ्रष्टता भी समय ताड़े |
विषमतायें नित उभारे, खेत  को  ही मेड खाए |
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

 मंदिरों में मकड़ जाला,  हर पुजारी  चतुर लाला | 
 भक्त की बुद्धि पे ताला,  *गौर  बनता  दान  काला |  *सोना
 जापते  रुद्राक्ष  माला,   बस  पराया  माल  आए--
 व्यर्थ हमने सिर कटाए,  बहुत ही अफ़सोस, हाय !

हम फिरंगी से  लड़े  थे  , नजरबंदी  से  लड़े   थे |
बालिकाएं मिट रही हैं , गली-घर में  लुट रही हैं  |
होलिका बचकर निकलती, जान से प्रह्लाद जाये --
व्यर्थ हमने सिर कटाए,  बहुत ही अफ़सोस, हाय !

बेबस, गरीबी रो रही है, भूख, प्यासी सो रही है  |
युवा पहले से पढ़ा पर , ज्ञान  माथे  पर चढ़ाकर |   
वर्ग  खुद  आगे  बढ़ा  पर ,  खो चुका संवेदनाएं |
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

है  दोस्तों से यूँ घिरा,   न पा सका उलझा सिरा |
पी रहा वो मस्त मदिरा, यादकर के  सिर-फिरा |
गिर गया कहकर गिरा,   भाड़  में  ये  देश जाए|
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय ! 


त्याग जीवन के सुखों को,  भूल  माता  के  दुखों को |
प्रेम-यौवन से बिमुख हो, मातृभू हो स्वतन्त्र-सुख हो |
क्रान्ति की  लौ  थे  जलाए,  गीत  आजादी  के  गाये |
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय ! 

4 comments:

  1. वाह क्या खूब ढूँढ लाये
    बेवकूफों ने सर कटाये
    सर को ये सब बेच खाये
    हम भी करें हाय हाय
    तुम भी करो हाय हाय
    सब करेंगे हाय हाय
    ये कह देंगे हमसे बाय बाय
    कहीं और जाके अपना
    एक देश आप लोग बनायें !

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  2. त्याग अब अपवाद होता,
    पार्श्व में इतिहास रोता।

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  3. जरूर सोचती होंगी आज भारत माँ की संतानें ... अफसोसनाक हालात हैं देश की आज ....

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  4. व्यर्थ नहीं जाता यहाँ कुछ भी..हम आजाद हैं तभी तो आप दिल की कह पा रहे हैं..

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