नाजायज सरकार से, क्या जायज उम्मीद |
गोबर है घुडसाल में, गौशाला में लीद |
गोबर है घुडसाल में, गौशाला में लीद |
गौशाला में लीद, ईद इनके घर होती -
इत बारिस घनघोर, गाँव के गाँव डुबोती |
चल खा मिड-डे मील, वक्त का यही तकाजा |
बुला आदमी चार, यार का उठे जनाजा ||
नाजायज सरकार से, क्या जायज उम्मीद |
ReplyDeleteगोबर है घुडसाल में, गौशाला में लीद |
Wah-wah-wah-wah.....Bahut badhiya Ravikar ji !
और उम्मीद भी क्या हो सकती है इस तंत्र से ...
ReplyDeleteसही कहा है आदरणीय !!
ReplyDeleteकटु सत्य..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति है
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
घुड़साल में करते गोबर और गौशाला में लीद ,,
ReplyDeleteनित होती रहती इनकी भी खूब मट्टी पलीद .
ॐ शान्ति
सुन्दर प्रस्तुति ....!!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (24-07-2013) को में” “चर्चा मंच-अंकः1316” (गौशाला में लीद) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
होगी भैया १४ में मिटटी खूब पलीद .
ReplyDeleteनाजायज सरकार से, क्या जायज उम्मीद ?
ReplyDeleteशुरुआत ही भ्रष्ट है !