Sunday, 14 July 2013

पर परिवर्तन नहीं सुहाए-

नकारात्मक ग्रोथ से, होवे बेडा गर्क ।
सकल घरेलू मस्तियाँ, इन्हें पड़े नहिं फर्क-
आम जिंदगी नर्क बनाए  ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥

रोटी थाली की छीने, चाहे रोजी जाय ।
छद्म धर्म निरपेक्षता, मौला ना मन भाय -
फिर भी फिर सरकार बनाये ।
पर  परिवर्तन नहीं सुहाए ॥ 

पाक बांग्लादेश से, दुश्मन की घुसपैठ ।
सीमा में घुस चाइना, रहा रोज ही ऐंठ -
अन्दर वह सीमा सरकाए ।
पर  परिवर्तन नहीं सुहाए ॥  

चला रसातल रूपिया, डालर रहा  डकार ।
बनता युवा अधेड़ सा, बहुरुपिया सरकार-
घूमे दाढ़ी बाल रंगाये ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥ 

आय आपदा हादसा, दशा सुधर नहिं पाय ।
बाढ़े मौका पाय के, अफसर नेता आय -
सड़ी लाश का कफ़न नुचाये-
पर  परिवर्तन नहीं सुहाए ॥

चंगुल में जिनके फंसा, वह बिरयानी खाय ।
उसको खाता देख कर, पब्लिक ये पगुराय-
सोच वहीँ गिरवी धर आये ।
पर  परिवर्तन नहीं सुहाए ॥ 
  

5 comments:

  1. चला रसातल रूपिया, डालर रहा डकार ।
    बनता युवा अधेड़ सा, बहुरुपिया सरकार-
    सुन्दर ........!!

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  2. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार१६ /७ /१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है

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  3. पाक बांग्लादेश से, दुश्मन की घुसपैठ ।
    सीमा में घुस चाइना, रहा रोज ही ऐंठ -
    अन्दर वह सीमा सरकाए ।
    पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥

    अजी भाई साहब देश कोई सीमा से चलता ही ?देश चलता है वोट से हम खाद्य सुरक्षा दे रहें हैं आपको और क्या पप्पू की जान लोगे .

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  4. चला रसातल रूपिया, डालर रहा डकार ।
    बनता युवा अधेड़ सा, बहुरुपिया सरकार-
    घूमे दाढ़ी बाल रंगाये ।
    पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
    latest post सुख -दुःख

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  5. कमाल का शब्द संयोजन......अद्भुत कटाक्ष .....वाह

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