नकारात्मक ग्रोथ से, होवे बेडा गर्क ।
सकल घरेलू मस्तियाँ, इन्हें पड़े नहिं फर्क-
आम जिंदगी नर्क बनाए ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥
रोटी थाली की छीने, चाहे रोजी जाय ।
छद्म धर्म निरपेक्षता, मौला ना मन भाय -
फिर भी फिर सरकार बनाये ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥
पाक बांग्लादेश से, दुश्मन की घुसपैठ ।
सीमा में घुस चाइना, रहा रोज ही ऐंठ -
अन्दर वह सीमा सरकाए ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥
चला रसातल रूपिया, डालर रहा डकार ।
बनता युवा अधेड़ सा, बहुरुपिया सरकार-
घूमे दाढ़ी बाल रंगाये ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥
आय आपदा हादसा, दशा सुधर नहिं पाय ।
बाढ़े मौका पाय के, अफसर नेता आय -
सड़ी लाश का कफ़न नुचाये-
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥
चंगुल में जिनके फंसा, वह बिरयानी खाय ।
उसको खाता देख कर, पब्लिक ये पगुराय-
सोच वहीँ गिरवी धर आये ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥
चला रसातल रूपिया, डालर रहा डकार ।
ReplyDeleteबनता युवा अधेड़ सा, बहुरुपिया सरकार-
सुन्दर ........!!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार१६ /७ /१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
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ReplyDeleteपाक बांग्लादेश से, दुश्मन की घुसपैठ ।
सीमा में घुस चाइना, रहा रोज ही ऐंठ -
अन्दर वह सीमा सरकाए ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥
अजी भाई साहब देश कोई सीमा से चलता ही ?देश चलता है वोट से हम खाद्य सुरक्षा दे रहें हैं आपको और क्या पप्पू की जान लोगे .
चला रसातल रूपिया, डालर रहा डकार ।
ReplyDeleteबनता युवा अधेड़ सा, बहुरुपिया सरकार-
घूमे दाढ़ी बाल रंगाये ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
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कमाल का शब्द संयोजन......अद्भुत कटाक्ष .....वाह
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