Tuesday, 30 July 2013

खिलें इसी में कमल, आँख का पानी, कीचड़


कीचड़ कितना चिपचिपा, चिपके चिपके चक्षु |
चर्म-चक्षु से गाय भी, दीखे उन्हें तरक्षु |

दीखे जिन्हें तरक्षु, व्यर्थ का भय फैलाता |
बने धर्म निरपेक्ष, धर्म की खाता-गाता |

कर ले कीचड़ साफ़,  अन्यथा पापी-लीचड़ |
खिलें इसी में कमल, आँख का पानी, कीचड़ |
चर्म-चक्षु=स्थूल दृष्टि
तरक्षु=लकडबग्घा


कमल खिलेंगे बहुत पर, राहु-केतु हैं बंकु |
चौदह के चौपाल  की, है उम्मीद त्रिशंकु |

है उम्मीद त्रिशंकु, भानुमति खोल पिटारा |
करे रोज इफ्तार, धर्म-निरपेक्षी नारा |

ले "मकार" को साध, कुशासन फिर से देंगे |
कीचड़ तो तैयार, कमल पर कहाँ खिलेंगे  ??
*Minority
*Muthuvel-Karunanidhi 
*Mulaayam
*Maayaa
*Mamta 

2 comments:

  1. बहुत ही सटीक कुंडलियां.

    रामराम.

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  2. गहरा कटाक्ष !

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