Sunday 21 July 2013

करते लौकिक शोक, झोंक भू गए भाड़ में-



अंक-28
राहु-केतु से त्रस्त *ग्लो,  मानव से यह ग्लोब ।
लगा जमाना लूट में, रोज जमाना रोब । 


रोज जमाना रोब, नाश कर रहा जयातुर ।
इने गिने कुछ लोग, बचाने को पर आतुर ।


रविकर लेता थाम, धरित्री इसी हेतु से ।
तू भी हाथ बढ़ाय, बचा ले राहु केतु से ॥
* चंद्रमा , कपूर

बने बीज से वृक्ष कुल, माटी विविध प्रकार ।
माटी पर डाले असर, खनिज-लवण जल-धार ।  

खनिज-लवण जल-धार, मेघ यह जल बरसाता । 
मेघ उड़ा दे वायु, वायु का ऋतु से नाता । 

ऋतु पर सूर्य प्रभाव, बचा ले आज छीज से । 
मनुज कहाँ है अलग, धरा से विविध बीज से ॥ 



कन्दुक पर दो दल भिड़े, करते सतत प्रहार। 
सौ मुख वाला  कालिया ,  जमा सूर्यजा धार । 

जमा सूर्यजा धार, पड़े जो उसके पाले । 
फिर कर के अधिकार, लगा के रक्खे ताले । 

रविकर करे पुकार, परिस्थिति बेहद नाजुक ।
लोक-लाज हित कृष्ण, लोक ले लौकिक-कन्दुक ॥


लेती गोबर्धन उठा, कनगुरिया -गोपेश।
अहंकार तब इंद्र का, कर देती नि:शेष । 

कर देती नि:शेष, मगर कलयुग में कृष्णा । 
आयें क्या इस देश, मिटाने को वह तृष्णा । 

कलयुग संघे शक्ति, सीख हर विपदा देती । 
इसीलिए तो थाम,  हथेली पूरा लेती ।

 हौले हौले लोकते, लाजवंत भू-लोक |
परलोकी अवलोक के, करते लौकिक शोक |

करते लौकिक शोक, झोंक भू गए भाड़ में |
शोषण भोग विलास, ज्ञान के छद्म आड़ में | 

बाहुबली दुष्कर्म, दिखा चालाकी-डौले |
कर शोषण अविराम, मिटे पर हौले हौले- ,

2 comments:

  1. राहु-केतु से त्रस्त *ग्लो, मानव से यह ग्लोब ।
    लगा जमाना लूट में, रोज जमाना रोब ।

    आज के हालातों का सही चित्रण !

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  2. सुन्दर प्रस्तुति रविकर जी !

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