अंक-28
राहु-केतु से त्रस्त *ग्लो, मानव से यह ग्लोब । लगा जमाना लूट में, रोज जमाना रोब । रोज जमाना रोब, नाश कर रहा जयातुर । इने गिने कुछ लोग, बचाने को पर आतुर । रविकर लेता थाम, धरित्री इसी हेतु से । तू भी हाथ बढ़ाय, बचा ले राहु केतु से ॥ * चंद्रमा , कपूर |
बने बीज से वृक्ष कुल, माटी विविध प्रकार ।
माटी पर डाले असर, खनिज-लवण जल-धार ।
खनिज-लवण जल-धार, मेघ यह जल बरसाता ।
मेघ उड़ा दे वायु, वायु का ऋतु से नाता ।
ऋतु पर सूर्य प्रभाव, बचा ले आज छीज से ।
मनुज कहाँ है अलग, धरा से विविध बीज से ॥
|
कन्दुक पर दो दल भिड़े, करते सतत प्रहार।
सौ मुख वाला कालिया , जमा सूर्यजा धार ।
जमा सूर्यजा धार, पड़े जो उसके पाले ।
फिर कर के अधिकार, लगा के रक्खे ताले ।
रविकर करे पुकार, परिस्थिति बेहद नाजुक ।
लोक-लाज हित कृष्ण, लोक ले लौकिक-कन्दुक ॥
|
लेती गोबर्धन उठा, कनगुरिया -गोपेश।
अहंकार तब इंद्र का, कर देती नि:शेष ।
कर देती नि:शेष, मगर कलयुग में कृष्णा ।
आयें क्या इस देश, मिटाने को वह तृष्णा ।
कलयुग संघे शक्ति, सीख हर विपदा देती ।
इसीलिए तो थाम, हथेली पूरा लेती ।
|
हौले हौले लोकते, लाजवंत भू-लोक |
परलोकी अवलोक के, करते लौकिक शोक | करते लौकिक शोक, झोंक भू गए भाड़ में | शोषण भोग विलास, ज्ञान के छद्म आड़ में | बाहुबली दुष्कर्म, दिखा चालाकी-डौले | कर शोषण अविराम, मिटे पर हौले हौले- , |
राहु-केतु से त्रस्त *ग्लो, मानव से यह ग्लोब ।
ReplyDeleteलगा जमाना लूट में, रोज जमाना रोब ।
आज के हालातों का सही चित्रण !
सुन्दर प्रस्तुति रविकर जी !
ReplyDelete