थानों में हैं मुर्गियां, हवालात में लात |
हवा लात खा पी करें, अण्डों की बरसात |
हवा लात खा पी करें, अण्डों की बरसात |
अण्डों की बरसात, नहीं तो डंडे बरसें |
बरसों से यह खेल, झेलती पब्लिक डरसे |
भोगे नक्सलवाद, देश मानों ना मानो |
उत्थानों की बात, करोगे कब रे थानों ||
सही चित्रण,...आज के हालात का!
ReplyDeleteथाने दड़बे बन गये , मुर्गी थानेदार, कह रविकर कविराय सुनो तुम, जनता झेले डंडे की मर ,जोरदार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (03-07-2013) को बुधवारीय चर्चा --- १२९५ ....... जीवन के भिन्न भिन्न रूप ..... तुझ पर ही वारेंगे हम ....में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अभी और झेलेंगे भाई ...
ReplyDeleteकटु सत्य...
ReplyDeleteबंद है थाने में मुर्गी और थाना बंद है , जुर्म में थाने का दरोगा जेल में बंद है ,सुन्दर
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