छंद कुण्डलिया : मिलें गहरे में मोती
--------अरुण कुमार निगम
हलचल होती देह से, मन से
होता ध्यान
लहरों को माया समझ, गहराई
को ज्ञान
गहराई को ज्ञान , मिलें
गहरे में मोती
सीधी-सच्ची बात, लहर
क्षण-भंगुर होती
गहराई में डूब
, छोड़ लहरें हैं चंचल
मन से होता ध्यान, देह
से होती हलचल ||
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बाँछे रविकर खिल गई, मिल जाता गुरु मन्त्र |
हिलता तब अस्तित्व था, अब हिलता तनु-तंत्र |
अब हिलता तनु-तंत्र, देह पर नहीं नियंत्रण |
हो कैसे फिर ध्यान, करूँ कैसे प्रभु अर्पण |
बड़ी कठिन यह राह, पसीना बरबस काछे |
शेष रहे संघर्ष, पिछड़ती रविकर *बाँछे ||
*इच्छा
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वाह ! वाह ! गुरु गुड़ तो चेला शक्कर...
ReplyDeleteबहुत जोरदार और प्रभावी.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत प्रभावशाली सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeletelatest post,नेताजी कहीन है।
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
रविकर की बाँछें खिलीं,हिला समूचा तंत्र
ReplyDeleteतुरत साधना-रत हुये,जब पाया गुरु-मंत्र
जब पाया गुरु-मंत्र , ध्यान में डूबे ऐसे
योगी हो तल्लीन , ध्यान में डूबे जैसे
गई कुण्डली जाग, सजी कुण्डलिया सुंदर
बादशाह बेताज , हमारे कविवर 'रविकर' ||