एक महीना- त्रासदी उपरान्त !
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
लगता है इक पार्टी, मिटा राष्ट्र-आदर्श | श्रद्धा-चिन्हों को हटा, करे आत्म-उत्कर्ष | करे आत्म-उत्कर्ष, योजनाबद्ध तरीका | सेतु कुम्भ केदार, मिटाने का दे ठीका | धर्मावलम्बी मूर्ख, नहीं फिर भी है जगता | सत्ता इनको सौंप, चैन से सोने लगता || क्या से क्या हो गया !पी.सी.गोदियाल "परचेत"
पहले तो थे घेरते, आज लुटेरे टेर |
एक बेर थे लूटते, अब लूंटे हर बेर || |
Aabhar Ravikar ji !
ReplyDeleteक्या खूब लिखते हैं आप मान्यवर...
ReplyDeleteमेरी नयी पोस्ट के लिये... मन का मंथन... मेरे विचारों कादर्पण...