Tuesday, 9 July 2013

तनिक सियासत से भी डरिए -

एस पी को देता उड़ा, किन्तु खून नहिं खौल
शासन शव-आसन करे, रहा असलहा तौल । । 
नक्सल को अब कहाँ पकड़िए । 
 तनिक सियासत से भी डरिए ।। 

हो जाए कुदरत खफा, मारे बीस हजार । 
राहत की चाहत लिए, हो भवसागर पार । 
लाश पास में रखकर सडिये। 
 तनिक सियासत से भी डरिए ।।

मंदिर में विस्फोट हो, करते बंद प्रदेश । 
लेना देना कुछ नहीं,  दे जनता को क्लेश ॥ 
ऐसे मरिये वैसे मरिये । 
 तनिक सियासत से भी डरिए ।।

बच्ची चच्ची दादियाँ, झेले हत्या रेप । 
नामर्दों की हरकतें, गया मर्द जब खेप ॥
धरना धरा प्रदर्शन करिए
 तनिक सियासत से भी डरिए ।।


4 comments:

  1. क्‍या कीजि‍ए हालात ऐसे ही हैं

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  2. हालेहालात बहुत बुरे हैं !!

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  3. बेहतरीन प्रस्तुति ,सटीक

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  4. "तमसाकृत से है घिरा, निश्चय सत्य तमाम |
    मार तमाचा तमतमा, सत्य ताक ले आम |
    सत्य ताक ले आम, ख़ास इक बात बताई |
    तम ही तो है सत्य, समझ में रविकर आई |
    मनुवा सत्य निकाल, डाल दे थोड़ा घमसा |
    भरत-सत्य साकार, पार कर जाए तमसा "........... संगीता जी के ब्लॉग पर कमेन्ट-बॉक्स में आपकी इस कृति ने ध्यान आकर्षित किया और मन मोह लिया . \

    आपकी उक्त रचना में निहित कटाक्ष भी बहुत रोचक है .
    शुभ-कामनायें

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