एस पी को देता उड़ा, किन्तु खून नहिं खौल ।
शासन शव-आसन करे, रहा असलहा तौल । ।
नक्सल को अब कहाँ पकड़िए ।
तनिक सियासत से भी डरिए ।।
हो जाए कुदरत खफा, मारे बीस हजार ।
राहत की चाहत लिए, हो भवसागर पार ।
लाश पास में रखकर सडिये।
तनिक सियासत से भी डरिए ।।
मंदिर में विस्फोट हो, करते बंद प्रदेश ।
लेना देना कुछ नहीं, दे जनता को क्लेश ॥
ऐसे मरिये वैसे मरिये ।
तनिक सियासत से भी डरिए ।।
बच्ची चच्ची दादियाँ, झेले हत्या रेप ।
नामर्दों की हरकतें, गया मर्द जब खेप ॥
धरना धरा प्रदर्शन करिए ।
तनिक सियासत से भी डरिए ।।
क्या कीजिए हालात ऐसे ही हैं
ReplyDeleteहालेहालात बहुत बुरे हैं !!
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ,सटीक
ReplyDelete"तमसाकृत से है घिरा, निश्चय सत्य तमाम |
ReplyDeleteमार तमाचा तमतमा, सत्य ताक ले आम |
सत्य ताक ले आम, ख़ास इक बात बताई |
तम ही तो है सत्य, समझ में रविकर आई |
मनुवा सत्य निकाल, डाल दे थोड़ा घमसा |
भरत-सत्य साकार, पार कर जाए तमसा "........... संगीता जी के ब्लॉग पर कमेन्ट-बॉक्स में आपकी इस कृति ने ध्यान आकर्षित किया और मन मोह लिया . \
आपकी उक्त रचना में निहित कटाक्ष भी बहुत रोचक है .
शुभ-कामनायें