खामखाँ लिख चिट्ठियाँ, करते इंक खराब |
लहरायें जब मुट्ठियाँ, देना तभी जवाब |
लहरायें जब मुट्ठियाँ, देना तभी जवाब |
देना तभी जवाब, नहीं दुर्गा बेचारी |
यू पी राजस्थान, आज फिर किसकी बारी |
कल खेमका अशोक, स्वाद ऐसा ही चक्खा |
रहे आप चुपचाप, लिखो मत आज खामखाँ |
कहीं गिरे दीवाल, कहीं सस्पेंशन लाये-
माटी का सौदा करें, लाठी का उस्ताद |
गोरख-धंधे रात-दिन, हुआ जिन्न आजाद |
गोरख-धंधे रात-दिन, हुआ जिन्न आजाद |
हुआ जिन्न आजाद, कहीं यह रेप कराये |
कहीं गिरे दीवाल, कहीं सस्पेंशन लाये |
हो जाते हैं क़त्ल, माफिया खाटी भाटी |
सत्ता करे खराब, मुलायम उर्वर माटी |
दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड |
आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है |
कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |
फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा |
बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा-
बहुत ही विचारोतेज्ज़क कुण्डलियाँ .. .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (05.08.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [05.08.2013]
ReplyDeleteगुज़ारिश दोस्तों की : चर्चामंच 1328 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
बहुत ही सटीक और सशक्त.
ReplyDeleteरामराम.
रविकर भाई बेहतरीन लिखा है, आपको ढेरो बधाई
ReplyDeleteवाह बहुत खूब !
ReplyDeleteरविकर जी लिखते रहना हमारा काम है । इससे कहां कुछ गलत हो रहा है इसकी और ध्यान आकृष्ट तो होता ही है और आप यह कार्य बखूबी कर रहे हैं आपका आभार और अभिनन्दन ।
ReplyDeleteआज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है |
ReplyDeleteकौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |
सत्संग का मतलब ही है सत -संग। सत अर्थात सत्य अर्थात ईश्वर। बेहद का सुख मिएगा फिर संसार में रहने पर अभी तो हम संसार को ही अपने अन्दर ले लेते हैं।
कलियुग का मूर्तन है यह रचना। पूरी बंदिश बे -मिसाल लाज़वाब और मार्मिक है व्यंग्य विड्म्बन भी शीर्ष पर है। ॐ शान्ति।
सामयिक रचना
ReplyDeleteबहुत ही सटीक और सशक्त
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