Sunday, 18 September 2011

भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा

बदचलन से दोस्ती, खुशियाँ मनाती  रीतियाँ
नेकनीयत से अदावत कर चुकी  हैं नीतियाँ |
आज आंटे की पड़ी किल्लत, सडा गेहूं बहुत-
भुखमरों को तो पिलाते, किंग बीयर-शीशियाँ ||
photo of a sugar ant (pharaoh ant) sitting on a sugar crystal
देख -गन्ने सी  सड़ी,  पेरी  गयी  इंसानियत,
ठीक चीनी सी बनावट ढो  रही हैं  चीटियाँ ||


हो  रही  बंजर  धरा, गौवंश  का  अवसान  है-
सब्जियों पर छिड़क दारु, दूध दुहती यूरिया ||


भ्रूण  में  मरती  हुई  वो  मारती इक वंश पूरा-
दोष दाहिज का  मरोड़े  कांच की नव चूड़ियाँ |


हो चुके इंसान गाफिल जब सृजन-सद्कर्म से,
पीढियां  दर  पीढियां, बढती  रहीं  दुश्वारियां  ||

17 comments:

  1. देख -गन्ने सी सड़ी, पेरी गयी इंसानियत,
    ठीक चीनी सी बनावट ढो रही हैं चीटियाँ ||

    बहुत सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  2. समाधान क्या है? अच्छा।

    ReplyDelete
  3. बहुत मस्त मुक्त छंद लिखे हैं आपने तो!

    ReplyDelete
  4. हो रही बंजर धरा, गौवंश का अवसान है-
    सब्जियों पर छिड़क दारु, दूध दुहती यूरिया ||


    भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा-
    दोष दाहिज का मरोड़े कांच की नव चूड़ियाँ |


    सटीक कटाक्ष ... मिलावट का ज़माना है ... यूरिया से दूध बनाया जाता है ..सब जानते हैं पर सेवन कर रहे हैं ..

    ReplyDelete
  5. नारी ही नारी को समाप्त करने पर आमादा है।

    ReplyDelete
  6. सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  7. भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा-
    दोष दाहिज का मरोड़े कांच की नव चूड़ियाँ |
    बहुत सशक्त रचना .सम्प्रेषण का शिखर छूती .

    ReplyDelete
  8. बहुत कुछ कह दिया …………एक सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  9. गहरे प्रभावित करती रचना।

    ReplyDelete
  10. गहरे उतरते शब्‍द ... ।

    ReplyDelete
  11. भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा-
    दोष दाहिज का मरोड़े कांच की नव चूड़ियाँ |

    अति मार्मिक पंक्तियाँ.

    ReplyDelete
  12. जीवन स्तर और चरित्र पतन में दिनोदिन बढ़ती गिरावट के परिणाम है ! हम कब सुधरेंगे ?

    ReplyDelete
  13. सामाजिक परिस्थिति की साफ
    वयानी, बे-टूक बात कह देना
    ही सही कविता कहलाती है.
    आपने इस कविता में यह धर्म
    बखूबी निभाया है.धन्यवाद .
    आनन्द विश्वास.

    ReplyDelete
  14. बहुत सामयिक,सटीक और यथार्थ की मार्मिक अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  15. बहुत गहरी रचना | बढ़िया |

    ReplyDelete