बदचलन से दोस्ती, खुशियाँ मनाती रीतियाँ
नेकनीयत से अदावत कर चुकी हैं नीतियाँ |
आज आंटे की पड़ी किल्लत, सडा गेहूं बहुत-
भुखमरों को तो पिलाते, किंग बीयर-शीशियाँ ||
देख -गन्ने सी सड़ी, पेरी गयी इंसानियत,
ठीक चीनी सी बनावट ढो रही हैं चीटियाँ ||
हो रही बंजर धरा, गौवंश का अवसान है-
सब्जियों पर छिड़क दारु, दूध दुहती यूरिया ||
भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा-
दोष दाहिज का मरोड़े कांच की नव चूड़ियाँ |
हो चुके इंसान गाफिल जब सृजन-सद्कर्म से,
पीढियां दर पीढियां, बढती रहीं दुश्वारियां ||
देख -गन्ने सी सड़ी, पेरी गयी इंसानियत,
ReplyDeleteठीक चीनी सी बनावट ढो रही हैं चीटियाँ ||
बहुत सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति...
समाधान क्या है? अच्छा।
ReplyDeleteबहुत मस्त मुक्त छंद लिखे हैं आपने तो!
ReplyDeleteसार्थक चेतना।
ReplyDeleteहो रही बंजर धरा, गौवंश का अवसान है-
ReplyDeleteसब्जियों पर छिड़क दारु, दूध दुहती यूरिया ||
भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा-
दोष दाहिज का मरोड़े कांच की नव चूड़ियाँ |
सटीक कटाक्ष ... मिलावट का ज़माना है ... यूरिया से दूध बनाया जाता है ..सब जानते हैं पर सेवन कर रहे हैं ..
नारी ही नारी को समाप्त करने पर आमादा है।
ReplyDeleteसटीक और सार्थक अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteभ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा-
ReplyDeleteदोष दाहिज का मरोड़े कांच की नव चूड़ियाँ |
बहुत सशक्त रचना .सम्प्रेषण का शिखर छूती .
आज 19- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
बहुत कुछ कह दिया …………एक सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteगहरे प्रभावित करती रचना।
ReplyDeleteगहरे उतरते शब्द ... ।
ReplyDeleteभ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा-
ReplyDeleteदोष दाहिज का मरोड़े कांच की नव चूड़ियाँ |
अति मार्मिक पंक्तियाँ.
जीवन स्तर और चरित्र पतन में दिनोदिन बढ़ती गिरावट के परिणाम है ! हम कब सुधरेंगे ?
ReplyDeleteसामाजिक परिस्थिति की साफ
ReplyDeleteवयानी, बे-टूक बात कह देना
ही सही कविता कहलाती है.
आपने इस कविता में यह धर्म
बखूबी निभाया है.धन्यवाद .
आनन्द विश्वास.
बहुत सामयिक,सटीक और यथार्थ की मार्मिक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत गहरी रचना | बढ़िया |
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